
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की ऐतिहासिक जीत (243 में से 202 सीटें) के बाद अब नतीजों के गहरे विश्लेषण का दौर शुरू हो गया है। जहां विपक्ष हार के कारणों पर माथापच्ची कर रहा है, वहीं राजनीतिक विश्लेषक उस ‘फैक्टर’ को तलाश रहे हैं जिसकी चर्चा कम हो रही है। यह निष्कर्ष निकल रहा है कि केवल जीविका दीदियों को दिए गए ₹10,000 या अन्य सरकारी योजनाओं ने ही काम नहीं किया, बल्कि महिला मतदाताओं का अभूतपूर्व समर्थन और नेतृत्व पर अटूट भरोसा सबसे बड़ा गेम चेंजर साबित हुआ।
वादे बेहतर, पर भरोसा नहीं
विपक्षी महागठबंधन ने चुनाव से पहले हर घर में नौकरी, फ्री बिजली, ₹30,000 मासिक आय, और बढ़ी हुई पेंशन जैसी लुभावनी घोषणाएं की थीं। ये वादे एनडीए के जीविका दीदियों को ₹10,000, मुफ्त राशन, और 125 यूनिट फ्री बिजली के वादों की तुलना में दिखने में कहीं ‘बेहतर’ थे। इसके बावजूद जनता ने इन पर भरोसा नहीं किया।
विश्लेषण बताते हैं कि पुरुषों पर जाति समीकरणों का प्रभाव रहा होगा, लेकिन महिला मतदाताओं ने सुरक्षा, घर, परिवार, शिक्षा और स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए जमकर मतदान किया। इस महिला केंद्रित वोटिंग ने सभी पारंपरिक जातिगत और चुनावी समीकरणों को ध्वस्त कर दिया, जिसके चलते पहली बार चुनाव लड़ रहे एनडीए उम्मीदवारों को भी भरपूर वोट मिले। जनता ने दो प्रमुख चेहरों नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार पर अपना विश्वास जताया।
नेतृत्व में समन्वय और ‘जंगलराज’ का नैरेटिव
महागठबंधन की हार का एक बड़ा कारण नेतृत्व में समन्वय की कमी भी रही। कांग्रेस नेता राहुल गांधी और राजद नेता तेजस्वी यादव के बीच तालमेल का अभाव स्पष्ट दिखा। राहुल गांधी ने मंच से कभी राजद के घोषणा पत्र पर खुलकर बात नहीं की, जिससे जनता तक एक स्पष्ट मैसेज नहीं पहुंच सका।
इसके विपरीत, एनडीए के शीर्ष नेताओं पीएम मोदी, सीएम नीतीश कुमार और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बयानों में विरोधाभास नहीं दिखा। उन्होंने लगातार ‘जंगलराज को फिर से नहीं आने देने’ का नैरेटिव सेट किया। पीएम, सीएम और गृह मंत्री इसे अलग-अलग तरीके से परिभाषित करते रहे, लेकिन जनता में कोई भटकाव नहीं हुआ और यह नैरेटिव सफल रहा।
स्थानीय भितरघात: जीत और हार का कारण
एनडीए की इस प्रचंड जीत के बावजूद, स्थानीय स्तर पर भितरघात और बगावत की घटनाएं कम नहीं हुईं।
मुजफ्फरपुर में भितरघात के बावजूद जीत: मुजफ्फरपुर विधानसभा सीट पर स्थानीय संगठन के बड़े नेताओं ने भाजपा उम्मीदवार रंजन कुमार के खिलाफ खुलेआम काम किया। इसके बावजूद, यूपी के मुख्यमंत्री की जनसभा और संघ के नेताओं की मेहनत ने मतदाताओं को घरों से बाहर निकाला। 59% से अधिक मतदान ने रंजन कुमार की जीत सुनिश्चित कर दी।
पारू में भितरघात का खामियाजा: पारू सीट पर भाजपा को बगावत का नुकसान झेलना पड़ा। अशोक कुमार सिंह का टिकट कटने के बाद, पार्टी बगावत को नियंत्रित नहीं कर पाई, जिसका सीधा फायदा राजद को मिला और वह सीट हार गई।
चिराग फैक्टर का डैमेज कंट्रोल
पिछले विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) ने अपने उम्मीदवार उतारकर जदयू को कांटी, गायघाट और मीनापुर जैसी सीटें गंवा दी थीं। इस बार, चिराग पासवान ने एनडीए के लिए काम किया, जिससे वोटों का बिखराव नहीं हुआ और गठबंधन ने इन सीटों पर बड़ी जीत दर्ज की।
अंततः, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की जीत ने यह ट्रेंड सेट किया है कि 20 वर्षों के लगातार शासन के बावजूद, यदि सरकार जनभावना के अनुरूप कार्य करती है और एक मजबूत नेतृत्व का भरोसा कायम रहता है, तो विरोधी लहर के बजाय सत्ता के पक्ष में सुनामी भी बन सकती है।