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बिहार का मंदिर: 9 दिन महिलाओं पर प्रतिबंध, सदियों पुरानी परंपरा जारी…

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बिहार का मंदिर: 9 दिन महिलाओं पर प्रतिबंध, सदियों पुरानी परंपरा जारी...

आज सोमवार से शारदीय नवरात्र शुरू हो गई है। इस दौरान बिहार के एक मंदिर में माता की खास पूजा की जाती है। जिसे बाम पूजा या तंत्र पूजा कहा जाता है। लेकिन आज आपको बताएंगे कि नवरात्र में इस जिलों में महिलाओं को मंदिर जाने पर रोक क्यों लगी हुई है।

आज से शारदीय नवरात्र का पावन पर्व पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस पर्व में पूरे 9 दिन तक करोड़ों श्रद्धालु पूरी श्रद्धा और भक्ति भाव में डूबे रहते हैं। दरअसल, बिहार के नालंदा जिले का प्रसिद्ध घोसरावा गांव है, जहां नवरात्रि के समय महिलाओं को मंदिर में जाना प्रतिबंध है। बता दें, नालंदा स्थित मां आशापुरी मंदिर में प्रवेश की भी अनुमति नहीं दी जाती है। इसके साथ ही पुरुष श्रद्धालु भी मंदिर के गर्भगृह में दर्शन नहीं कर सकते। नवरात्रि के अंतिम दिन विशेष हवन के आयोजन के बाद ही मंदिर को आम श्रद्धालुओं के लिए खोला जाता है। तब जाकर महिलाओं और पुरुषों को गर्भगृह के दर्शन करते है। इस हवन का उद्देश्य मंदिर की ऊर्जा को शुद्ध करना होता है। वहीं, इतने दिनों तक गर्भगृह में सिर्फ तीन पुजारियों का ही प्रवेश रहता है। हालांकि, यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। और यहां 9 दिनों तक तांत्रिक अनुष्ठान का आयोजन होता है। इस मंदिर में आशा देवी माता की दो मूर्तियों के अलावा शिव-पार्वती और भगवान बुद्ध की कई मूर्तियां हैं। काले पत्थर की सभी प्रतिमाए बौद्ध ,शुंग और पाल कालीन हैं।

गौरतलब है कि यह परंपरा 9वीं सदियों से चली आ रही है। उस समय यह स्थान विश्व के प्रमुख बौद्ध साधना केंद्रों के लिए खास माना जाता था। यहां आकर बौद्ध भिक्षु तंत्र-मंत्र की गहन साधना करते थे। बिहार के अलावा बंगाल, झारखंड और ओडिशा से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं। इतिहास की बात करें तो इस मंदिर की स्थापना मगध साम्राज्य के पाल काल में हुई है। यहां मां दुर्गा की अष्टभुजी प्रतिमा स्थापित है। मां के नौ रूपों में से एक सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा होती है। इस मंदिर में सबसे पहले राजा जयपाल ने पूजा की थी। मंदिर के बनने के पीछे की कहानी है कि यहां एक ठिलहा हुआ करता था। जिस पर मां आशापुरी विराजमान थीं। उसी जगह पर आज मां आशापुरी का मंदिर बना हुआ है।

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