
राहुल गांधी ने एक्स पर ये पोस्ट किया है-आपका ‘सुपरफूड’ मखाना। सोचा है कहां से आता है? कौन, कैसे बनाता है? बिहार के किसानों के खून-पसीने का उत्पाद है मखाना। बिक्री हजारों में, मगर आमदनी कौड़ियों में। पूरा मुनाफा सिर्फ बिचौलियों का। हमारी लड़ाई इसी अन्याय के खिलाफ है. मेहनत और हुनर का हक मजदूर को ही मिलना चाहिए.आखिर राहुल गांधी के मखाना प्रेम का राज क्या है? ,
‘वोटर अधिकार यात्रा’ के दौरान कटिहार में पानी भरे खेत में उतरकर राहुल गांधी ने मखाने के उत्पादन की विधि जानी और उसके बाद कारखाने पर मखाना-फोड़ी और इस धंधे के लाभ-हानि का गुणा-गणित समझा. उत्पादन में कष्टप्रद श्रम और कम पारिश्रमिक के साथ ही प्रसंस्करण के लिए मशीनों की अनुपलब्धता पर चिंता जताई. उसी रात एक्स पर पोस्ट भी किया..राहुल ने मखाना किसानों की मेहनत और कम आय के मुद्दे को उठाया बिचौलियों द्वारा मुनाफाखोरी पर सवाल उठाए और मखाना श्रमिकों के अधिकारों की बात की.दरअसल, बिहार की राजनीति में मखाने को लेकर भावुकता पहले इतनी नहीं थी. तब यह एक स्नैक्स था. बाद में जब माले में गूंथकर राजनेताओं के गले में पड़ने लगा तो राजनीति ने इसमें क्षेत्रीय लगाव का गंध सूंघ लिया. अब तो राहुल गांधी भी इस सुगंध पर मुग्ध हैं.
मिथिलांचल की यात्रा से पहले दोबारा सोमवार को राहुल ने अपने एक्स हैंडल पर वीडियो अपलोड किए हैं. उसमें युवा कारोबारी-सह-श्रमिक का उत्साह देखते बनता है. श्रमिकों से बातचीत करते राहुल का अंदाज अपनत्व वाला है. मंगलवार से उनकी यात्रा तीसरे और अंतिम चरण में बढ़ेगी.दूसरे चरण में वे मखाना उत्पादन के एक बेल्ट (सीमांचल) से गुजरे थे. तीसरे चरण में दूसरे बेल्ट (मिथिलांचल) में होंगे. बिहार में मखाने की फसल यही तक सिमटी हुई है, फिर भी राजनीति भावुक है तो उसका कारण इस परिक्षेत्र में विधानसभा की 70 सीटें हैं. 24 सीमांचल और 46 मिथिलांचल में.
मुस्लिम बाहुल्य सीमांचल में महागठबंधन भले मजबूत है लेकिन मिथिलांचल का सामाजिक समीकरण कांग्रेस के लिए अभी तक दुरूह है. केंद्र सरकार ने मखाना बोर्ड के लिए 100 करोड़ का बजटीय प्रविधान कर रखा है. ऐसे में राहुल का जतन मखाने का कद्रदान और श्रमिकों का हमदर्द बनकर मिथिलांचल में कांग्रेस की जमीन तैयार करने की है.मखाने के उत्पादन में बिहार का योगदान 90 प्रतिशत का है. मखाना बोर्ड से लगभग पांच लाख श्रमिकों को प्रत्यक्ष लाभ मिलने की संभावना है. मुख्यत: निषाद-मल्लाह समाज इसका उत्पादक और श्रमिक है, जिसकी जनसंख्या सात-आठ प्रतिशत के करीब है. लगभग तीन दर्जन सीटों के चुनाव परिणाम पर इस समाज के वोट का भी व्यापक प्रभाव है.मखाने से राहुल के मोह का असली कारण यही है.
बिहार सरकार ने मखाने की लागत प्रति हेक्टेयर 97000 रुपये निर्धारित कर रखी है. मखाना विकास योजना के अंतर्गत प्रति हेक्टेयर 75 प्रतिशत (72750 रुपये) की सब्सिडी मिल रही है. प्रति एकड़ औसतन आठ क्विंटल गुरी का उत्पादन होता है, जो 35000 से 40000 रुपये क्विंटल की दर से बिकती है. प्रसंस्कृत मखाना अभी खुदरा बाजार में 900 से 1600 रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा है. बिचौलिये इसे 400 से 750 रुपये क्विंटल की दर से खरीद रहे हैं.अगर किसान स्वयं मखाना प्रसंस्कृत कर बेचें तो बीच का लगभग 50 प्रतिशत लाभ उन्हें होगा. यह लाभ अभी बिचौलिये मार ले जा रहे हैं.