
जेडीयू से अपनी पार्टी मे आए अति -पिछड़ा समाज (धनुक जाति ) के नेता मंगनीलाल मंडल को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर लालू यादव ने एकबार फिर से नीतीश कुमार के अति -पिछड़ा वोट बैंक मे सेंधमारी की कोशिश की है. राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के प्रदेश अध्यक्ष पद की दौड़ में आलोक मेहता सबसे आगे थे. लालू यादव के सबसे भरोसेमंद थे . लेकिन 17 जनवरी 2025 को JDU छोड़कर RJD में लौटे मंगनी लाल मंडल के हाथ मे लालू यादव ने पार्टी की कमान देकर सबको चौंका दिया है. आज मंगनीलाल का नामांकन होगा । 19 जून को पटना के ज्ञान भवन में होने वाली राज्य परिषद की बैठक में उनके अध्यक्ष बनने की औपचारिक घोषणा होगी.
इस फैसले को लालू प्रसाद यादव के खांटी पॉलिटिक्स से जोड़कर देखा जा रहा है. आलोक मेहता RJD के वरिष्ठ नेता और लालू यादव के करीबी रहे हैं. वह समस्तीपुर के उजियारपुर से राष्ट्रीय जनता दल के विधायक हैं. पूर्व सांसद रह चुके आलोक मेहता बिहार सरकार में शिक्षा और राजस्व मंत्री रह चुके हैं और वह कुशवाहा समाज से आते हैं जो बिहार में करीब 4-6% वोट बैंक की हिस्सेदारी रखता है. उनका अध्यक्ष बनना लगभग पक्का माना जा रहा था. लेकिन, हाल ही में वैशाली कोऑपरेटिव बैंक घोटाले में ED की छापेमारी ने उनके नाम को विवादों में ला दिया. हालांकि, RJD ने इसे राजनीति से प्रेरित करार दिया था. लेकिन, अब उन्हें बिहार राजद अध्यक्ष न बनाकर संभव है कि लालू यादव आरजेडी की छवि को खराब नहीं करना चाहते हैं.
दूसरी ओर 76 वर्ष के मंगनी लाल मंडल धानुक जाति से आते हैं जो बिहार में जिसकी संख्या लगभग 2.14 प्रतिशत है. राज्य की आबादी में इनकी संख्या 27 लाख 96 हजार 605 बताई गई है, जो अकेली उपजाति के तौर पर बहुत नहीं है, लेकिन यह ईबीसी समुदाय में जुड़कर गोलबंदी का जरिया जब बन जाती है तो 30-35% वोटरों का प्रतिनिधित्व करती है. राजनीति के जानकार कहते हैं कि लालू यादव की खांटी पॉलिटिक्स हमेशा से सामाजिक समीकरणों पर टिकी रही है. MY यानी मुस्लिम-यादव गठजोड़ समीकरण उनकी बुनियाद है, लेकिन EBC और दलित वोटरों को जोड़कर वे NDA के वोटबैंक में सेंध लगाना चाहते हैं.इसी कड़ी में मंगनी लाल की नियुक्ति EBC को साधने का दांव है.
झंझारपुर से पूर्व सांसद, बिहार विधान परिषद सदस्य (1986-2004) और राज्यसभा सांसद (2004-2009) रह चुके मंडल मिथिलांचल में प्रभावशाली नेता माने जाते हैं. JDU में 5 साल बिताने के बाद उनकी RJD में वापसी और तुरंत अध्यक्ष पद की दौड़ में आगे बढ़ना लालू यादव की EBC केंद्रित रणनीति को दर्शाती है. इसके साथ ही राजनीति के जानकारों की नजर में मंगनी लाल मंडल को बिहार राजद का अध्यक्ष बनाया जाना मिथिलांचल में अपनी खोई आरजेडी की जमीन को वापस पाने की कवायद की कोशिश मानी जा रही है. खासकर पचपनिया (EBC समूह की 55 जाति) वोटरों को वापस पाने की कोशिश दिखाई दे रही है. राजनीति के जानकार बताते हैं कि अभी केवल लालू यादव की ही नहीं, बल्कि तेजस्वी यादव की सोच भी राजद के फैसलों में दिखने लगी है. वह युवा वोटरों और आधुनिक दौर की राजनीतिक रणनीतियों पर फोकस करते हैं, साथ ही लालू यादव की जातिगत समीकरण वाली राजनीति को भी अपनाते हैं. मंगनी लाल मंडल की नियुक्ति से तेजस्वी यादव पुरानी और नई पीढ़ी के बीच तालमेल बनाना चाहते हैं.
हालांकि, 76 साल के मंगनी लाल मंडल और उनका पहले RJD छोड़ने का इतिहास कुछ नेताओं में असंतोष पैदा कर सकता है. वहीं आलोक मेहता राजद के बड़े नाम हैं. मंगनी लाल मंडल की तुलना में सियासी तौर पर अपेक्षाकृत युवा 60 साल के आलोक मेहता को खासकर नीतीश कुमार और सम्राट चौधरी की काट के रूप में देखा जाता रहा है. ऐसे में फिलहाल सवाल इसी बात को लेकर है कि लालू यादव ने आलोक मेहता की जगह मंगनी लाल मंडल को आरजेडी का अध्यक्ष बनाने का फैसला क्यों किया.
बहरहाल, लालू यादव की यह सियासी चाल 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले RJD को संगठनात्मक रूप से मजबूत करने और NDA को टक्कर देने की कोशिश है. राजनीति के जानकारों के अनुसार, लोकसभा चुनाव में हार के बाद लालू-तेजस्वी ने आत्ममंथन किया और मंगनी लाल का चयन उसका नतीजा है. अब यह देखना बाकी है कि लालू की यह खांटी पॉलिटिक्स कितनी कामयाब होती है. आलोक मेहता को बिहार आरजेडी का अध्यक्ष नहीं बनाकर लालू यादव ने उन्हें भविष्य में सरकार में बड़ा चेहरा बनाने का संकेत दिया है, ताकि कुशवाहा वोट बैंक को साधा जा सके.
