
बिहार की सियासत में दलित और अति पिछड़ा वोट बैंक को साधने को लेकर आरजेडी –कांग्रेस के बीच घमाशान जारी है. 1990 के दशक 25% वोट शेयर वाली कांग्रेस 9.5% पर पहुँच गई है. राहुल गांधी दलितों –अति-पिछड़ों को साधने की जीतोड़ कोशिश कर रहे हैं.लगातार सक्रीय हैं और बड़े पैमाने पर संगठनात्मक बदलाव कर चुके हैं. राहुल गांधी की इस बदली राजनीती से महागठबंधन के अंदर ‘D’ पॉलिटिक्स (दलित पॉलिटिक्स) की जंग छिड़ी हुई है.
बिहार में महागठबंधन के अंदर दलित और अति पिछड़े वोट बैंक को लेकर आरजेडी और कांग्रेस के बीच ही आगे बढ़ने की लड़ाई चल पड़ी है. एक तरफ जहां राहुल गांधी लगातार बिहार का दौरा कर दलित और अति पिछले वोट बैंक को साधने की कोशिश कर रहे हैं. वहीं इसी गठबंधन में तेजस्वी यादव भी दलित और अति पिछड़े पर जोर आजमाइश कर रहे हैं. दरअसल बिहार की राजनीति में दलित और अति पिछड़ा वोट बैंक हमेशा से निर्णायक रहा है. करीब 19 प्रतिशत दलित और 36 प्रतिशत अति पिछड़ा (EBC) आबादी वाले बिहार में ये समुदाय किसी भी गठबंधन की जीत की कुंजी हो सकते हैं.
इस बार महागठबंधन के भीतर ही इस वोट बैंक को लेकर खींचतान देखने को मिल रही है. राहुल गांधी ने पिछले पांच महीनों में बिहार का पांच बार दौरा किया है. उनकी रणनीति साफ है. कांग्रेस का खोया हुआ दलित और अति पिछड़ा वोट बैंक वापस हासिल करना.इसी महीने दरभंगा के आंबेडकर छात्रावास में ‘शिक्षा न्याय संवाद’ से लेकर पटना में फुले दंपती पर आधारित फिल्म ‘फुले’ देखने तक, राहुल का हर कदम दलित समुदाय को लुभाने की दिशा में है.
कांग्रेस ने संगठन स्तर पर भी बदलाव किए हैं. सवर्ण नेता अखिलेश प्रसाद सिंह को हटाकर दलित नेता राजेश राम को बिहार कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया, और सुशील पासी को सह-प्रभारी नियुक्त किया गया. इसके अलावा, राहुल की जातिगत जनगणना और निजी क्षेत्र में आरक्षण की मांग ने दलित और अति पिछड़ा वर्ग में नई उम्मीद जगाई है.तेजस्वी यादव भी पीछे नहीं हैं. तेजस्वी अब दलित और अति पिछड़ा वोटरों को अपने पाले में लाने की कोशिश में हैं. तेजस्वी यादव अति पिछड़ा समाज और दलितों को लुभाने के लिए पटना में कई कार्यक्रमों का भी आयोजन कर रहे हैं.
महागठबंधन के भीतर राहुल और तेजस्वी की यह रणनीति गठबंधन की एकता पर सवाल खड़े कर रही है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राहुल गांधी की लगातार बिहार यात्राएं और दलित-अति पिछड़ा फोकस न केवल कांग्रेस को मजबूत करने की कोशिश है, बल्कि सीट बंटवारे में अधिक हिस्सेदारी हासिल करने का दबाव भी है. दूसरी ओर, तेजस्वी यादव के लिए यह स्थिति चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि आरजेडी का दलित वोट बैंक में पहले से ही प्रभाव है, और कांग्रेस की आक्रामक रणनीति उनके इस आधार को कमजोर कर सकती है.
पिछले कुछ दौरे में राहुल ने न तो लालू प्रसाद यादव से मुलाकात की और न ही तेजस्वी से. इससे महागठबंधन में तनाव की अटकलें तेज हो गई हैं. जेडीयू के एमएलसी नीरज कुमार ने तो यहां तक दावा किया कि “राहुल और तेजस्वी के बीच खाई बढ़ रही है, और इंडिया गठबंधन जल्द टुकड़ों में बंट सकता है.” हालांकि, तेजस्वी ने दिल्ली में मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल से मुलाकात के बाद कहा कि “महागठबंधन की सरकार बनेगी, और सीएम फेस की चिंता न करें.”
दूसरी ओर एनडीए इस आंतरिक कलह का फायदा उठाने की पूरी कोशिश में है. बीजेपी और जेडीयू की जोड़ी, नीतीश कुमार के नेतृत्व में, विकास, धर्म, और राष्ट्रवाद के एजेंडे पर जोर दे रही है. चिराग पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी (रामविलास) के एनडीए में शामिल होने से दलित वोट बैंक में उनकी पकड़ और मजबूत हुई है, खासकर पासवान समुदाय (5.31% आबादी) में. नीतीश कुमार की ‘महादलित’ रणनीति ने भी दलित वोटों को पहले ही अपने पक्ष में कर लिया है. बीजेपी ने हर विधानसभा सीट पर सर्वे शुरू कर दिया है, और सीट बंटवारे की रणनीति को अंतिम रूप देने में जुटी है.
