बिहार पुलिसकर्मियों की ज़मीनी पीड़ा “कल्याण नहीं, सज़ा बनती जा रही है ट्रांसफर नीति!”
ट्रांसफर नीति,कल्याण नहीं, सज़ा
बिहार पुलिसकर्मियों के लिए ‘कल्याण’ शब्द अब एक खाली नारा बनता जा रहा है।

जिन नीतियों को कभी पुलिसकर्मियों के मानवीय और पारिवारिक पक्ष को ध्यान में रखकर लाया गया था, अब वही नीतियाँ उनके लिए तनाव, अस्थिरता और असंतोष का कारण बन गई हैं। स्थानांतरण नीति में किए गए हालिया बदलावों ने बिहार पुलिस के हजारों जवानों को न केवल मानसिक रूप से तोड़ा है, बल्कि उनके परिवारिक जीवन को भी गहरे संकट में डाल दिया है।
2020 में एक प्रगतिशील कदम के रूप में पुलिसकर्मियों को अपनी पसंद के जिलों के विकल्प देने की नीति लागू की गई थी। इसके तहत, पुलिसकर्मी 51 जिलों में से अपनी प्राथमिकता चुन सकते थे, जिससे उन्हें परिवार के पास रहने का अवसर मिलता। लेकिन अगस्त 2023 में तत्कालीन DGP एस.के. सिंघल ने एक नई घोषणा की — पुलिसकर्मियों को घर से 100 किलोमीटर के दायरे में तैनात किया जाएगा। उद्देश्य था: पारिवारिक जीवन में संतुलन, मानसिक शांति और बेहतर कार्य प्रदर्शन। लेकिन, ज़मीनी हकीकत इसके बिल्कुल उलट निकली। पहले जो पुलिसकर्मी 200–300 किलोमीटर दूर तैनात थे, उन्हें अब 400–500 किलोमीटर दूर स्थानांतरित कर दिया गया। “पर क्षेत्र” (Zone) नीति, जिसमें 8 वर्षों तक क्षेत्र में स्थायित्व था, उसे भी रद्द कर दिया गया। यहां तक कि रेल पुलिस (GRP) जैसे विशेष क्षेत्रों में भी बिना प्रशिक्षण या अनुकूलता के ट्रांसफर कर दिया गया।
पुलिसकर्मियों की व्यथा: “हम इंसान हैं, मशीन नहीं” एक पुलिसकर्मी ने कहा,“हम हर मौसम में ड्यूटी करते हैं, कभी गर्मी, कभी बाढ़, कभी चुनाव। लेकिन अब हमारी खुद की ज़िंदगी ही अस्थिर हो गई है। घर से सैकड़ों किलोमीटर दूर जाकर ड्यूटी करेंगे तो बीमार मां-बाप, बच्चों की पढ़ाई, सब कुछ छूट जाएगा।”उन्होंने यह भी कहा कि अगर स्थानांतरण ‘कल्याण’ के नाम पर किया जाए, तो उसमें मानवीय दृष्टिकोण होना चाहिए, न कि वह केवल एकतरफा आदेश बनकर जवानों पर थोप दिया जाए।

