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टीचर रहते केके पाठक से भिड़े बंशीधर ब्रजवासी, शिक्षकों के समर्थन से पहुंचे विधान परिषद

बिहार, वंशीधर बृजवासी

मार्च 2024 का वह दौर बिहार के शिक्षा विभाग में उथल-पुथल का प्रतीक बन गया, जब अपर शिक्षा सचिव केके पाठक की सख्त कार्यशैली से शिक्षक वर्ग में खौफ का माहौल था। इसी बीच शिक्षकों के अधिकारों को लेकर सड़कों पर उतरे शिक्षक नेता बंशीधर ब्रजवासी विभाग की कार्रवाई के केंद्र में आ गए। निलंबन से लेकर सेवा से बर्खास्तगी तक की कार्रवाई ने न सिर्फ शिक्षा विभाग की सख्ती को उजागर किया, बल्कि इसी टकराव ने बंशीधर ब्रजवासी को चुनावी राजनीति की राह पर ला खड़ा किया।

केके पाठक के कार्यकाल में शिक्षकों के लिए आंदोलन, सभा या यहां तक कि व्हाट्सएप ग्रुप में अपनी बात रखना भी प्रतिबंधित था। भय और दबाव के इस माहौल में शिक्षक अपनी समस्याएं न तो खुलकर कह पा रहे थे और न ही कहीं उठा पा रहे थे। ऐसे हालात में बंशीधर ब्रजवासी शिक्षकों की आवाज बनकर सामने आए और उन्होंने इस दमन के खिलाफ खुलकर आंदोलन का रास्ता चुना। जुलाई 2024 में बंशीधर ब्रजवासी की बर्खास्तगी के बाद शिक्षक समाज में गहरी सहानुभूति की लहर दौड़ गई। सरकारी स्कूलों के शिक्षकों का उन्हें व्यापक समर्थन मिला। 5 दिसंबर 2024 को मतदान के दिन सरकारी अवकाश होने से बड़ी संख्या में शिक्षक मतदान केंद्रों तक पहुंचे और प्रथम वरीयता में सर्वाधिक मत बंशीधर ब्रजवासी को दिए। शिक्षक समुदाय से तीन उम्मीदवार मैदान में होने के बावजूद जनाधार ब्रजवासी के पक्ष में स्पष्ट दिखा और वे विधान पार्षद बनकर पटना पहुंचे।

गौरतलब है कि विधान पार्षद बनने से बहुत पहले से ही बंशीधर ब्रजवासी शिक्षकों के हक की लड़ाई लड़ते रहे हैं। वर्ष 2013 में पटना में हुए शिक्षक आंदोलन के दौरान उन्हें लाठीचार्ज का सामना करना पड़ा और गिरफ्तारी भी हुई। 2015 में नियोजित शिक्षकों को राज्यकर्मी का दर्जा देने की मांग को लेकर उन्होंने रथयात्रा निकाली, जिसके दौरान बक्सर में उनकी गिरफ्तारी हुई। इसके बाद ब्रजवासी ने पूरी मजबूती से शिक्षकों के समर्थन में मोर्चा संभाल लिया। इसी बीच उन्होंने तत्कालीन अपर मुख्य सचिव केके पाठक की नीतियों के खिलाफ सीधी टक्कर ली और उनके आदेशों को मानने से इनकार कर दिया। सक्षमता परीक्षा और संगठन संचालन पर रोक के विरोध में गुलाब और लाठी आंदोलन कर उन्होंने यह संदेश दिया कि दमन के सामने झुकने के बजाय संघर्ष का रास्ता चुना जाएगा। यही संघर्ष उन्हें सड़कों से विधान परिषद तक ले गया।

बता दें कि बंशीधर ब्रजवासी के शिक्षक से जननेता बनने की कहानी की नींव वर्ष 2006 में ही पड़ चुकी थी। मुजफ्फरपुर जिला मुख्यालय पर शिक्षकों की समस्याओं को लेकर धरना-प्रदर्शन करना, मंच से अपनी बात रखना और संघर्ष का नेतृत्व करना उनकी पहचान बनती जा रही थी। मड़वन प्रखंड के रहने वाले बंशीधर ब्रजवासी 2003 में शिक्षामित्र के रूप में बहाल हुए थे, लेकिन नौकरी के साथ-साथ उन्होंने अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने का रास्ता भी चुन लिया। हालांकि, उन्होंने परिवर्तनकारी शिक्षक संघ की स्थापना की और 23 जनवरी 2006 से अनशन पर बैठकर सरकार को सीधे चुनौती दी। यही वह दौर था, जब शिक्षक समाज ने उन्हें गंभीरता से लेना शुरू किया। आंदोलन का असर भी दिखा और सरकार ने सभी शिक्षामित्रों को पंचायत और प्रखंड शिक्षक का दर्जा देने का फैसला किया। इस फैसले के साथ बंशीधर ब्रजवासी स्वयं भी पंचायत शिक्षक बने, लेकिन यहीं से उनका संघर्ष खत्म नहीं हुआ, बल्कि शिक्षक हितों की लड़ाई का सफर और मजबूत होकर आगे बढ़ता चला गया।

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