
वंदे मातरम् को लेकर संसद में बहस का तूफ़ान तेज हो गया है। सवाल यह उठ रहे हैं कि स्कूलों और सरकारी कार्यक्रमों में इसे पूरी तरह गाया जाना चाहिए या केवल कुछ पंक्तियों तक ही सीमित रखना पर्याप्त है। लोकसभा और राज्यसभा में इस मुद्दे को लेकर जोरदार विवाद छिड़ गया है। केंद्र सरकार समर्थित NDA गठबंधन वंदे मातरम् में किसी भी तरह की काट-छांट का विरोध कर रहा है। और इसके पीछे जवाहरलाल नेहरू को जिम्मेदार बता रहा है, जबकि विपक्ष इस आरोप को गलत ठहराते हुए पलटवार कर रहा है। इसी बीच राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने वंदे मातरम् पर अहम टिप्पणी की है, जो सियासी गलियारों में चर्चा का केंद्र बन गई है।
राज्यसभा में वंदे मातरम् पर बहस के दौरान विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्यों में नेहरू, महात्मा गांधी, मौलाना आजाद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सरदार पटेल और गोविंद वल्लभ पंत जैसे दिग्गज शामिल थे। उन्होंने एक प्रस्ताव पारित किया था कि राष्ट्रीय समारोहों में वंदे मातरम् केवल पहले दो छंदों तक ही गाया जाए। साथ ही सवाल उठाते हुए कहा कि क्या प्रधानमंत्री और गृह मंत्री इस फैसले को केवल नेहरू तक सीमित करके अन्य सभी महान नेताओं का अपमान नहीं कर रहे हैं, जिन्होंने मिलकर यह निर्णय लिया था।
खड़गे ने आगे कहा कि कांग्रेस ने आज़ादी की लड़ाई के दौरान ‘वंदे मातरम्’ को एक प्रेरक नारा बनाने का काम किया है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार का रवैया हमेशा से देशभक्ति और स्वतंत्रता संग्राम के प्रतीकों के प्रति नकारात्मक रहा है। वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह पर सीधे निशाना साधते हुए कहा कि दोनों नेता जवाहरलाल नेहरू का अपमान करने का कोई मौका नहीं छोड़ते और लगातार उनके योगदान पर सवाल उठाते रहते हैं।