
बिहार की राजनीति में गठबंधन और समीकरणों के बीच अब पार्टियों के भीतर का घमासान सतह पर आने लगा है। ताज़ा मामला पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) का है। पार्टी के कद्दावर नेता और वरिष्ठ विधायक रामेश्वर महतो के एक सोशल मीडिया पोस्ट ने बिहार के राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज कर दी है। महतो के इस पोस्ट को सीधे तौर पर पार्टी नेतृत्व और विशेषकर उपेंद्र कुशवाहा के खिलाफ असंतोष के रूप में देखा जा रहा है।
“नेतृत्व की नीयत धुंधली हो जाए…” – महतो का तीखा प्रहार
रामेश्वर महतो ने अपने फेसबुक पोस्ट में बिना किसी का नाम लिए नेतृत्व पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने लिखा, “राजनीति में सफलता केवल भाषणों से नहीं, बल्कि सच्ची नीयत और दृढ़ नीति से मिलती है। जब नेतृत्व की नीयत धुंधली हो जाए और नीतियाँ जनहित से अधिक स्वार्थ की दिशा में मुड़ने लगें, तब जनता को ज्यादा दिनों तक भ्रमित नहीं रखा जा सकता।” महतो का यह बयान इशारा करता है कि पार्टी के भीतर निर्णय लेने की प्रक्रिया में पारदर्शिता की भारी कमी है।
परिवारवाद और मंत्री पद को लेकर खींचतान
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि रामेश्वर महतो की नाराजगी की मुख्य वजह मंत्री पद की अनदेखी और पार्टी में बढ़ता परिवारवाद है। सूत्रों के अनुसार, महतो को उम्मीद थी कि सरकार में भागीदारी के समय उनके नाम पर विचार किया जाएगा, लेकिन उपेंद्र कुशवाहा ने अपने बेटे दीपक प्रकाश को प्राथमिकता दी। वरिष्ठ विधायक को किनारे कर परिवार के सदस्य को आगे बढ़ाने के इस फैसले ने महतो को पूरी तरह से बागी रुख अपनाने पर मजबूर कर दिया है।
संकट में पार्टी की छवि
RLM के भीतर यह असंतोष केवल एक व्यक्ति की नाराजगी तक सीमित नहीं है। पार्टी के कई अन्य नेता भी दबी जुबान में परिवारवाद और पद वितरण को लेकर सवाल उठा रहे हैं। उपेंद्र कुशवाहा, जिनका राजनीतिक करियर खुद कई उतार-चढ़ावों से भरा रहा है, उनके लिए अपने ही कुनबे को एकजुट रखना अब एक बड़ी चुनौती बन गया है। जानकारों का मानना है कि यदि रामेश्वर महतो जैसे वरिष्ठ नेताओं को समय रहते नहीं मनाया गया, तो आगामी चुनावों में पार्टी को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
संगठन के सामने कठिन डगर
फिलहाल पार्टी की ओर से इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि पार्टी के वरिष्ठ संयोजक डैमेज कंट्रोल में जुट गए हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सोशल मीडिया पर सार्वजनिक रूप से अपनी ही पार्टी को कटघरे में खड़ा करना यह दर्शाता है कि संवाद के सारे रास्ते बंद हो चुके हैं। अब देखना यह होगा कि उपेंद्र कुशवाहा अपने पुराने साथी को मना पाते हैं या RLM में यह दरार किसी बड़ी टूट का कारण बनेगी।
