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केके पाठक के फैसलों से क्यों हिली नीतीश सरकार? जानिए मोर्चा खोलने की असली कहानी…

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केके पाठक के फैसलों से क्यों हिली नीतीश सरकार? जानिए मोर्चा खोलने की असली कहानी…

वरिष्ठ आईएएस अधिकारी केके पाठक हमेशा अपने सख़्त फैसलों और तेज़तर्रार कार्यशैली के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा विभाग से लेकर मद्य निषेध विभाग तक, जहां भी ज़िम्मेदारी मिली, उन्होंने कठोर रुख अपनाया और यही रवैया कई बार संबंधित मंत्रियों से टकराव की वजह भी बन गया। खासकर शिक्षा विभाग, जो सीधे जनता से जुड़ा है, वहाँ पाठक की सख़्ती और मंत्रियों की नाराज़गी ने सरकार को कई मौकों पर असहज स्थिति में ला दिया।

आईएएस अधिकारी केके पाठक की सख़्त प्रशासनिक शैली लंबे समय से विवादों का कारण रही है। कई मंत्री उनकी नीतियों और तौर-तरीकों से असहमति रखते थे, लेकिन ज्यादातर ने सार्वजनिक रूप से कुछ भी न कहकर स्थिति को संभालने की कोशिश की। हालांकि जब धैर्य की सीमा पार हुई, तो आरोप सीधे सरकार तक गूंजने लगे। नीतीश कैबिनेट के दो मंत्रियों ने तो खुलकर शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक पर गंभीर आरोप लगा दिए। जिसमें जेडीयू के मंत्री रत्नेश सदा ने पाठक को “सामंती मानसिकता” का अधिकारी बताते हुए उन्हें दलित विरोधी तक कह दिया। वहीं, शिक्षा मंत्री की ओर से उनके आप्त सचिव ने विभाग के शीर्ष अधिकारी को पत्र लिखकर कड़ा ऐतराज़ जताया। पत्र में कहा गया कि पाठक नई गाइडलाइनों के नाम पर महादलित टोले के शिक्षकों का वेतन काटने का अनुचित आदेश दे रहे हैं। नियम के अनुसार, यदि 90% छात्र उपस्थित नहीं होंगे तो शिक्षक का वेतन काटा जाएगा,जिसे मंत्री ने पूरी तरह गलत और तुगलकी बताया। वहीं, मंत्री रत्नेश सदा ने स्पष्ट कहा कि यह निर्णय न केवल महादलित शिक्षकों पर अनावश्यक दबाव डालता है, बल्कि बच्चों की सामाजिक परिस्थितियों को भी नज़रअंदाज़ करता है। यही कारण था कि उन्होंने इस फैसले का खुलकर विरोध किया और इसे वापस लेने की मांग की।

दरअसल, शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने भी अपने विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक पर खुलकर नाराज़गी जताई थी। मंत्रिमंडल में चल रहे तनाव उस वक्त साफ दिखाई दिया जब शिक्षा मंत्री ने पाठक सहित विभाग के कई निदेशक-स्तरीय अधिकारियों को पीत पत्र जारी कर दिया। इस पत्र में उन्होंने अधिकारियों की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े किए और आरोप लगाया कि विभाग बिहार सरकार की निर्धारित कार्य-संहिता के अनुरूप काम नहीं कर रहा है। वहीं, अपने नोट में मंत्री चंद्रशेखर ने लिखा कि कई मामलों में सरकारी नियमों की अनदेखी हो रही है और राजपत्रित अधिकारियों को उनके पद के अनुरूप जिम्मेदारियाँ नहीं दी जा रहीं। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि ऐसी कार्यशैली विभागीय कामकाज को प्रभावित करती है और इसमें तत्काल सुधार किए जाने की आवश्यकता है। मंत्री के इस कदम से स्पष्ट है कि विभाग के भीतर फैसलों को लेकर मतभेद गहराते जा रहे थे और केके पाठक की शैली ने इस टकराव को और बढ़ा दिया था।

हालांकि, केके पाठक की कार्यशैली ने बिहार की शिक्षा व्यवस्था में वर्षों से जमा धूल को हटाकर कई अनियमितताओं को सामने ला दिया था। चाहे वह फर्जी नामांकन हों, फर्जी प्रमाणपत्रों का खेल हो या स्कूलों में पढ़ाई को लेकर शिक्षकों की ढिलाई। उनकी सख़्ती से व्यवस्था में सुधार की उम्मीदें भी बढ़ी थीं, लेकिन इसी दौरान उनका केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर भेजा जाना कई सवाल भी छोड़ गया। कार्मिक मंत्रालय की ओर से जारी आदेश में स्पष्ट किया गया कि मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति ने मंत्रिमंडल सचिवालय में अतिरिक्त सचिव के रूप में उनकी नियुक्ति को मंजूरी दे दी है। अब केके पाठक नई भूमिका में केंद्र में अपनी सेवाएं देंगे, लेकिन बिहार में शिक्षा सुधार की दिशा में उनकी तेज़तर्रार कार्यशैली की चर्चा लंबे समय तक होती रहेगी।

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