
विकास की रफ्तार के साथ अब सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण पर भी बिहार सरकार का फोकस साफ दिखने लगा है। प्राचीन भाषाओं को बचाने और उन्हें नई पीढ़ी तक पहुँचाने की दिशा में एक अहम कदम उठाते हुए एनडीए सरकार ने प्राकृत और पाली भाषा के लिए दो नई अकादमियों की स्थापना को मंजूरी दे दी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में हुई राज्य कैबिनेट की बैठक में इस प्रस्ताव पर मुहर लगी, जिससे इन भाषाओं के संरक्षण, अध्ययन और प्रचार-प्रसार को संस्थागत रूप मिलेगा।
हालांकि, इस फैसले के साथ बिहार मंत्रिमंडल ने प्रशासनिक ढांचे में भी अहम बदलाव को मंजूरी दी है। उच्च शिक्षा विभाग के गठन के साथ ही युवा, रोजगार एवं कौशल विकास विभाग और नागरिक उड्डयन विभाग भी अस्तित्व में आएंगे। कैबिनेट सचिवालय विभाग की अधिसूचना के मुताबिक उच्च शिक्षा विभाग विश्वविद्यालय स्तर पर शोध से जुड़े संस्थानों के प्रशासनिक नियंत्रण का जिम्मा संभालेगा। इसके अंतर्गत संस्कृत, प्राकृत और पाली जैसी भाषाओं से जुड़ी अकादमियों का संचालन भी किया जाएगा। विशेषज्ञों के अनुसार संस्कृत से विकसित प्राकृत और पाली भाषाओं का ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व रहा है। वहीं, पाली आज भी श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व एशिया में बौद्ध धर्म की प्रमुख भाषा है, जबकि सौरसेनी, मागधी और गंधारी जैसी प्राकृत भाषाएं भारतीय दार्शनिक और सांस्कृतिक परंपराओं की समृद्ध विरासत को दर्शाती हैं। जेडीयू के वरिष्ठ नेता नीरज कुमार ने इस पहल को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि यह फैसला न केवल भारत की सांस्कृतिक जड़ों को मजबूत करेगा, बल्कि बिहार को बौद्ध अध्ययन और उच्च शिक्षा के वैश्विक केंद्र के रूप में नई पहचान भी देगा।
दरअसल, यह पहल प्राचीन भाषाओं में रुचि रखने वाले शोधकर्ताओं, विद्यार्थियों और विद्वानों के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर के रूप में देखी जा रही है। नई अकादमियों के गठन से प्राकृत और पाली भाषाओं के अध्ययन, शोध और प्रशिक्षण को संस्थागत आधार मिलेगा, जिससे इन भाषाओं से जुड़ी ऐतिहासिक, दार्शनिक और सांस्कृतिक विरासत को गहराई से समझा जा सकेगा। सरकार का यह प्रयास न केवल लुप्तप्राय होती भाषाई धरोहर को संजोने में मदद करेगा, बल्कि प्राचीन ज्ञान और साहित्य को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने की दिशा में भी एक सार्थक कदम साबित होगा।
