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बिहार विधानसभा सत्र: शपथ ग्रहण में दिखा सौहार्द; सम्राट चौधरी ने छुए नीतीश के पैर, मैथिली-संस्कृत-उर्दू में ली गई शपथ

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बिहार विधानसभा सत्र: शपथ ग्रहण में दिखा सौहार्द; सम्राट चौधरी ने छुए नीतीश के पैर, मैथिली-संस्कृत-उर्दू में ली गई शपथ

बिहार विधानसभा का पांच दिवसीय शीतकालीन सत्र सोमवार से शुरू हो गया। इस सत्र के पहले दिन, सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा ने विधायकों के साथ शपथ ग्रहण किया और इसके बाद, सम्राट चौधरी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पैर छुए। सत्र में विधायकों ने अपनीअपनी मातृभाषाओं में शपथ ली, जिनमें मैथिली, संस्कृत और उर्दू शामिल हैं। मैथिली ठाकुर सहित कई विधायकों ने मैथिली में शपथ ली, वहीं तारकिशोर प्रसाद ने संस्कृत में शपथ ली। एआईएमआईएम के विधायकों ने उर्दू में शपथ ली।

प्रोटेम स्पीकर नरेंद्र नारायण यादव ने विधायकों को शपथ दिलाई और विधानसभा की कार्यवाही की शुरुआत की। इस शपथ ग्रहण के तुरंत बाद, नए विधानसभा अध्यक्ष के लिए नामांकन प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। भाजपा के वरिष्ठ नेता डॉ. प्रेम कुमार के निर्विरोध अध्यक्ष चुने जाने की संभावना है, हालांकि यदि एक से अधिक नामांकन दाखिल होते हैं तो 2 दिसंबर को मतदान कराया जाएगा।

पेपरलेस विधानसभा: डिजिटल इंडिया का एक कदम और

इस शीतकालीन सत्र का एक प्रमुख आकर्षण यह है कि विधानसभा की कार्यवाही पूरी तरह से ‘पेपरलेस’ (कागज रहित) होगी। ‘नेशनल ईविधान’ (नेवा) मंच के माध्यम से संचालित होने वाली इस प्रक्रिया का उद्देश्य विधायी कार्यों को तकनीकी और पारदर्शी बनाना है। यह डिजिटल मंच भारत सरकार की ‘डिजिटल इंडिया’ पहल का हिस्सा है, और इसके तहत सवालजवाब, नोटिस, भाषण, संशोधन प्रस्ताव और मतदान की पूरी प्रक्रिया डिजिटल माध्यम से होगी।

सदन में उच्च गति वाले वाईफाई, टैबलेट और उन्नत सेंसरयुक्त माइक्रोफोन की व्यवस्था की गई है। साथ ही, छह बड़े डिस्प्ले स्क्रीन भी लगाए गए हैं, जिन पर वास्तविक समय में वोटिंग परिणाम और अन्य जानकारी प्रदर्शित की जाएगी। इसका उद्देश्य पारदर्शिता बढ़ाना है और इसके जरिए राजनीतिक दृष्टि से भी यह सत्र महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

सदन का समीकरण और विपक्ष की चुनौती

विधानसभा में राजग (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) के पास प्रचंड बहुमत है, जिससे सरकार के लिए विधायी एजेंडा को आगे बढ़ाना आसान होगा। वहीं विपक्ष मात्र 35 सीटों पर सिमट कर रह गया है, जो एक बड़ी चुनौती साबित हो सकती है। राजनीतिक दृष्टिकोण से यह सत्र खास माना जा रहा है, क्योंकि 10 वर्षों के बाद अब सदन में 200 से अधिक विधायक सत्ता पक्ष में बैठेंगे।

इस सत्र की कार्यवाही और घटनाक्रम राज्य की राजनीति में महत्वपूर्ण मोड़ ला सकते हैं, और यह देखना दिलचस्प होगा कि विपक्ष अपनी भूमिका को कैसे प्रभावी तरीके से निभाता है।

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