
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की ताजा रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि का खुलासा न करने की खतरनाक स्थिति सामने आई है। रिपोर्ट के अनुसार, राजनीतिक दलों के कुल 612 उम्मीदवारों में से 176 उम्मीदवार निर्धारित फॉर्म (सी-7) में अपने आपराधिक रिकॉर्ड का विवरण नहीं दे पाए, जिससे चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही पर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए दाखिल उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि पर एडीआर की ताजा रिपोर्ट ने गंभीर सवाल उठाए हैं। राजनीतिक दलों के कुल 612 उम्मीदवारों में से केवल 436 ने निर्धारित फॉर्म सी-7 में अपनी आपराधिक जानकारी दी, जबकि 176 उम्मीदवार इस अनिवार्य प्रकटीकरण से बच गए। वहीं, रिपोर्ट के मुताबिक, प्रमुख दलों में सबसे अधिक अनदेखी तेज प्रताप यादव की पार्टी जन शक्ति जनता दल में रही, जहां 28 उम्मीदवारों ने जानकारी साझा नहीं की। इसके अलावा, जेडीयू के 12, लोजपा के 12, लालू यादव की पार्टी के 8 और आम आदमी पार्टी के 2 उम्मीदवारों ने फॉर्म में विवरण नहीं दिया। इसमें जन सुराज के एक उम्मीदवार का नाम भी शामिल है। इसके साथ ही एडीआर ने यह भी बताया कि राजनीतिक दलों ने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को चुनने के पीछे अलग तर्क प्रस्तुत किए हैं। दलों का कहना है कि ऐसे उम्मीदवार मजबूत जन समर्थन, चुनावी व्यवहार्यता और समुदाय सेवा के अनुभव के कारण प्राथमिकता पाते हैं। उदाहरण के तौर पर, मोकामा के एक उम्मीदवार, जिन पर आईपीसी और बीएनएसएस की 54 धाराओं के तहत आरोप हैं, को JDU ने इसलिए टिकट दिया क्योंकि वह निर्वाचन क्षेत्र में सबसे लोकप्रिय और भरोसेमंद उम्मीदवार हैं।
हालांकि, मोतिहारी के उस उम्मीदवार पर 52 आपराधिक मामले दर्ज होने के बावजूद, पार्टी का कहना है कि उनकी लोकप्रियता और क्षेत्र में प्रभाव उन्हें पार्टी के लिए सर्वोत्तम विकल्प बनाता है। यह स्थिति सुप्रीम कोर्ट के 13 फरवरी, 2020 के आदेशों का स्पष्ट उल्लंघन है, जिसमें राजनीतिक दलों को अनिवार्य रूप से यह बताने को कहा गया था कि उन्होंने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को क्यों नामांकित किया। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि राजनीतिक दल इस निर्देश का पालन नहीं कर रहे हैं, जिससे चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही प्रभावित हो रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इस तरह की स्थिति लगातार बनी रही, तो यह लोकतांत्रिक प्रणाली की विश्वासनीयता पर सवाल खड़ा कर सकती है।