
आईपीएल ऑक्शन का मंच सिर्फ खिलाड़ियों की किस्मत नहीं बदलता, बल्कि करोड़ों की बोली के पीछे छिपा आर्थिक सच भी उजागर करता है। इस बार कैमरून ग्रीन पर लगी 25.20 करोड़ रुपये की रिकॉर्ड बोली ने सबका ध्यान खींचा और इतिहास रच दिया। लेकिन यह पूरी रकम सीधे खिलाड़ी की जेब में नहीं जाती। टैक्स, लीग नियमों और अन्य कटौतियों के बाद असल कमाई कहीं कम रह जाती है। ऐसे में सवाल बड़ा है कि 25.20 करोड़ में से ग्रीन को वास्तव में कितने करोड़ मिलेंगे और कितनी रकम टैक्स में चली जाएगी?
अबू धाबी के एतिहाद एरिना में आईपीएल 2026 मिनी ऑक्शन की शुरुआत के साथ ही रोमांच चरम पर था। जैसे ही ऑस्ट्रेलियाई स्टार ऑलराउंडर कैमरून ग्रीन का नाम पुकारा गया, ऑक्शन हॉल में हलचल तेज हो गई। चेन्नई सुपर किंग्स और कोलकाता नाइटराइडर्स के बीच चली आक्रामक बोली-जंग ने कुछ ही पलों में रकम को करोड़ों के पार पहुंचा दिया। हर नई बोली के साथ ग्रीन की कीमत बढ़ती चली गई और आखिरकार केकेआर ने 25.20 करोड़ रुपये की ऐतिहासिक बोली लगाकर बाज़ी मार ली। दरअसल, इस सौदे ने ग्रीन को आईपीएल इतिहास का सबसे महंगा विदेशी खिलाड़ी बना दिया और फैंस को चौंका दिया। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती। जिस 25.20 करोड़ की रकम ने सुर्खियां बटोरीं, वह पूरी की पूरी खिलाड़ी के खाते में नहीं जाती। आईपीएल के नियम, टैक्स और तय कटौतियां इस डील को एक नया मोड़ देती हैं, जहां करोड़ों की चमक के पीछे छिपा असली गणित सामने आता है।
आईपीएल की सैलरी कैप व्यवस्था के चलते किसी भी विदेशी खिलाड़ी को एक सीजन में 18 करोड़ रुपये से ज्यादा भुगतान नहीं किया जा सकता। इसी नियम के तहत कैमरून ग्रीन को भी रिकॉर्ड बोली के बावजूद अधिकतम 18 करोड़ रुपये ही मिलेंगे। बाकी बचे 7.20 करोड़ रुपये बीसीसीआई के वेलफेयर फंड में जमा कर दिए जाएंगे। यानी ऑक्शन में लगी भारी-भरकम रकम भले ही सुर्खियां बने, लेकिन खिलाड़ी की कमाई पहले से तय दायरे में ही सिमटी रहती है। हालांकि 18 करोड़ रुपये सुनकर भी पूरी तस्वीर साफ नहीं होती। आईपीएल नियमों के मुताबिक विदेशी खिलाड़ियों की कमाई पर करीब 20 फीसदी टीडीएस काटा जाता है। इसके अलावा आय सीमा पार होने पर सरचार्ज और सेस भी जुड़ते हैं, जिससे कुल टैक्स बोझ बढ़कर लगभग 30 प्रतिशत तक पहुंच सकता है। नतीजतन टैक्स कटने के बाद कैमरून ग्रीन के खाते में पहुंचने वाली रकम और घट जाती है, जो करोड़ों की बोली के पीछे छिपा असली गणित उजागर करती है।
आईपीएल में खिलाड़ियों के भुगतान को लेकर एक मजबूत और पारदर्शी व्यवस्था बनाई गई है। फ्रेंचाइजी और बीसीसीआई के बीच हुए समझौते के तहत खिलाड़ियों को तय समय पर रकम मिलना सुनिश्चित किया जाता है। अगर किसी कारणवश कोई फ्रेंचाइजी भुगतान करने में असमर्थ रहती है, तो बीसीसीआई खुद आगे आकर खिलाड़ी को पूरा भुगतान करता है और बाद में वह राशि फ्रेंचाइजी के केंद्रीय राजस्व हिस्से से समायोजित कर ली जाती है। यही वजह है कि करोड़ों की डील हो या सामान्य कॉन्ट्रैक्ट, खिलाड़ियों की कमाई पूरी तरह सुरक्षित रहती है और भुगतान को लेकर किसी तरह की अनिश्चितता नहीं रहती।
