
पांच साल में एक करोड़ रोजगार का लक्ष्य महत्वाकांक्षी जरूर है, लेकिन इसे हासिल करने के लिए बिहार को सरकारी नियुक्तियों से कहीं आगे बढ़कर निजी और कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने पर अवसर पैदा करने होंगे। मौजूदा हालात में जहां सरकारी विभागों में केवल 5.75 लाख पद ही खाली हैं, वहीं बाकी रोजगार का बोझ टेक्सटाइल, आईटी, स्टार्टअप, कृषि, पशुपालन, फूड प्रोसेसिंग और लघु उद्योगों पर ही आएगा। सरकार की नीतियां अगर तेजी से जमीन पर उतरें, तभी यह मुश्किल लक्ष्य अपनी मंजिल के करीब पहुंच सकता है।
नीतीश कुमार ने विधानसभा चुनाव में किए अपने सबसे बड़े वादे 2030 तक एक करोड़ रोजगार को सरकार बनने के साथ ही प्राथमिकता दे दी है। 21 अक्टूबर की चुनावी रैली में की गई घोषणा अब कैबिनेट के आधिकारिक प्रस्ताव के रूप में सामने है, जिसमें अगले पांच वर्षों में एक करोड़ युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने का लक्ष्य तय किया गया है। सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि ये रोजगार सिर्फ सरकारी नियुक्तियों पर आधारित नहीं होंगे, बल्कि बिहार को पूर्वी भारत का नया टेक हब बनाकर बड़े पैमाने पर निजी और उच्च-तकनीकी क्षेत्रों में अवसर तैयार किए जाएंगे। रक्षा गलियारा, सेमीकंडक्टर विनिर्माण, ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर, मेगा टेक सिटी और फिटनेस सिटी जैसे प्रोजेक्ट्स के जरिये बिहार को ‘ग्लोबल वर्कप्लेस’ के रूप में विकसित करने की योजना है। इन परियोजनाओं की निगरानी के लिए एक विशेष समिति पहले ही गठित कर दी गई है। साथ ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मिशन को मंजूरी देकर सरकार ने AI को राज्य के विकास का केंद्रीय स्तंभ बनाने का संकेत दिया है। रोजगार सृजन को व्यवस्थित रूप देने के लिए तीन नए विभाग—युवा, रोजगार एवं कौशल विकास, उच्च शिक्षा, और नागर विमानन भी स्थापित किए गए हैं।
बिहार में रोजगार बढ़ाने के लिए नीतियों की कमी कभी नहीं रही सरकार अब तक उद्योगों को गति देने के लिए करीब 16 नीतियां लागू कर चुकी है। असली चुनौती इन नीतियों के वास्तविक क्रियान्वयन और परिणामों की निरंतर निगरानी में है। अक्सर होता यह है कि नीति तो बन जाती है, अधिसूचना भी जारी हो जाती है, लेकिन यह देखने की व्यवस्था नहीं होती कि साल-दर-साल उससे क्या हासिल हुआ। इसका उदाहरण 2016 में बनी औद्योगिक निवेश प्रोत्साहन नीति है, जिसके नौ साल बीत जाने के बाद भी बिहार उद्योग विकास के मामले में पिछली पंक्ति में खड़ा है। जो सीमित पूंजी निवेश हुआ भी है, उससे बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा नहीं हो पाए। वहीं, एक करोड़ रोजगार का लक्ष्य बिना किसी ठोस औद्योगिक विस्तार के सिर्फ आकांक्षा बनकर रह जाएगा। 2023 में पटना में आयोजित ‘बिहार बिजनेस कनेक्ट’ में 300 कंपनियों ने 50,530 करोड़ रुपये के एमओयू पर हस्ताक्षर किए थे। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि पिछले दो वर्षों में इन एमओयू का कितना हिस्सा ज़मीन पर उतरा? कितने उद्योग सचमुच स्थापित हुए और कितने रोजगार पैदा हुए? जब तक इन सवालों का ठोस मूल्यांकन नहीं होगा, एमओयू कागजों से आगे नहीं बढ़ पाएंगे। यही बिहार की सबसे बड़ी प्रशासनिक समस्या है कि नीतियां बन जाती हैं, घोषणाएं होती हैं, लेकिन प्रोजेक्ट फाइलों से बाहर नहीं निकलते।
हालांकि, सरकार ने 9 बंद पड़ी चीनी मिलों को दुबारा शुरू करने और 25 नई मिलें स्थापित करने का एलान किया है। योजना अगर पूरी तरह लागू हुई, तो कुल मिलाकर करीब 25 लाख लोगों को रोजगार मिलने का दावा है। एक मध्यम आकार की मिल में लगभग 1,000 लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार मिलता है, यानी 34 मिलों में करीब 34 हजार सीधी नौकरियाँ पैदा होंगी। इसके अलावा परिवहन, मजदूरी, पैकेजिंग, होटल और गोदाम सहित अन्य सेवाओं में लगभग 1 लाख अप्रत्यक्ष रोजगार पैदा होंगे। साथ ही कृषि क्षेत्र में प्रभाव कहीं बड़ा है। एक मिल को हर सीजन में 40–60 हजार किसानों से गन्ना चाहिए। गन्ना बोने, कटाई, लोडिंग और ट्रांसपोर्ट में बड़ी संख्या में लोग जुड़ते हैं। अनुमान है कि एक मिल से लगभग 70 हजार कृषि आधारित रोजगार सृजित होते हैं। वहीं, चीनी उद्योग सीजनल होने के कारण स्थायी नौकरियाँ सीमित होंगी। कुल मिलाकर स्पष्ट है कि एक करोड़ रोजगार का लक्ष्य केवल सरकारी नौकरियों से नहीं, बल्कि तेज औद्योगिक विस्तार से ही हासिल किया जा सकता है। बिहार का वर्तमान औद्योगिक परफॉर्मेंस धीमा है और अगले पाँच साल में लक्ष्य तक पहुंचने के लिए किसी बड़े औद्योगिक ‘टर्नअराउंड’ की जरूरत होगी।