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कैसा होता है जेल का क्रेच? माँ के साथ जन्मे बच्चों की जिंदगी का अंदरूनी सच…

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कैसा होता है जेल का क्रेच? माँ के साथ जन्मे बच्चों की जिंदगी का अंदरूनी सच…

नीले ड्रम केस की आरोपी मुस्कान रस्तोगी ने मेरठ जेल में एक बच्ची को जन्म दिया है, जिसके बाद एक बार फिर यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि आखिर जेल की चारदीवारी के भीतर जन्म लेने वाले इन मासूमों की परवरिश कैसे होती है। क्या होता है उनकी देखभाल का सिस्टम? जेल में क्रेच का माहौल कैसा होता है? और इन बच्चों को सरकार किस तरह की सुविधाएँ देती है? मुस्कान की नॉर्मल डिलीवरी के बाद जहां परिवार का कोई सदस्य अस्पताल नहीं पहुंचा, वहीं इस घटना ने जेल में जन्म लेने वाले बच्चों की जिंदगी, अधिकारों और देखभाल की पूरी व्यवस्था को लेकर नई बहस छेड़ दी है।

भारत की जेलों में अब अधिकांश मामलों में सीधे जेल परिसर के भीतर डिलीवरी नहीं कराई जाती। गर्भावस्था के अंतिम चरण में पहुंचते ही महिला बंदियों को अस्पताल में भर्ती कराया जाता है, वहीं डिलीवरी के कुछ हफ्तों बाद मां और नवजात को वापस जेल लाकर महिला वार्ड में उनकी अलग व्यवस्था की जाती है। अगर किसी महिला कैदी के साथ पहले से छह साल से कम उम्र का बच्चा है, तो उसे भी मां के साथ जेल में रहने की अनुमति होती है। ऐसे बच्चों के लिए महिला वार्ड में मदर सेल या विशेष रूप से निर्धारित सुरक्षित क्षेत्र बनाए जाते हैं। दिल्ली की तिहाड़ और मंडोली जैसी बड़ी जेलों में इस समय कई बच्चे अपनी माताओं के साथ रह रहे हैं। यहां इन मासूमों की रोज़ देखभाल, मेडिकल चेकअप, पौष्टिक भोजन और शुरुआती शिक्षा की पूरी व्यवस्था होती है। अधिकतर जेलों में बच्चों के लिए क्रेच भी संचालित किए जाते हैं, जहां उन्हें प्री-प्राइमरी लेवल की शिक्षा मिलती है। जैसे कि खेल, ड्रॉइंग, कहानी, संगीत और अन्य गतिविधियाँ, ताकि उनका विकास सामान्य माहौल की तरह निरंतर चलता रहे। हालांकि, इन क्रेचों में एनजीओ प्रशिक्षित शिक्षकों की व्यवस्था करते हैं, जबकि कई जगह पढ़ी-लिखी महिला कैदियों को प्रशिक्षण देकर यह जिम्मेदारी सौंपी जाती है। जेल परिसरों में मौजूद प्रमाणित वैक्सीनेशन सेंटर में बीसीजी, पोलियो, हेपेटाइटिस, डीपीटी और टिटनेस जैसी सभी आवश्यक टीकाकरण समय पर किया जाता है। साथ ही, मां और बच्चे दोनों की नियमित मेडिकल जांच सुनिश्चित की जाती है, ताकि जेल की सीमाओं के बावजूद बच्चे का विकास और स्वास्थ्य किसी भी तरह प्रभावित न हो।

दरअसल, जेल प्रशासन ऐसे बच्चों के पोषण और खुशियों का भी पूरा ध्यान रखता है। रोजाना दूध, फल, साफ-सुथरे कपड़े, खिलौने और हाइजीन किट की व्यवस्था की जाती है, ताकि उनका बचपन कैदखाने की कठोरता महसूस न करे। यहां तक कि इन मासूमों के जन्मदिन भी जेल परिसर में ही मनाए जाते हैं, ताकि उन्हें सामान्य बचपन का एहसास मिल सके। हालांकि, कानून स्पष्ट रूप से कहता है कि कोई भी बच्चा 6 साल की उम्र तक ही मां के साथ जेल में रह सकता है। इसके बाद जेल प्रशासन पहले बच्चे के नजदीकी रिश्तेदारों से संपर्क करता है। यदि परिवार का कोई सदस्य बच्चे को अपनाने के लिए आगे नहीं आता, तो उसे चाइल्ड केयर होम या अनाथालय भेज दिया जाता है, जहां उसके भविष्य से जुड़ी आगे की देखभाल और सुरक्षा की व्यवस्था की जाती है।

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