
बिहार की राजनीति में मंत्रिमंडल का शपथग्रहण तो पूरा हो गया, लेकिन अब सभी की नजरें सबसे अहम सवाल पर टिक गई हैं कि कौन मंत्री किस विभाग का प्रभारी बनेगा। ज्यादातर पुराने चेहरे अपनी कुर्सी बचाने में लगे हैं, तो कुछ नए मंत्री बड़े और प्रभावशाली विभाग पाने की कोशिश कर रहे हैं। इसी बीच एक ऐसा मंत्रालय है, जो सिर्फ अपने कामकाज के लिए नहीं, बल्कि उससे जुड़े कथित ‘अपशकुन’ की वजह से सुर्खियों में है, और मंत्रियों के लिए चुनौतियों का प्रतीक बनता जा रहा है।
बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण और परंपरागत मान्यताएं अक्सर तर्क से ज्यादा असरदार साबित होती हैं। यही कारण है कि नीतीश सरकार के गठन के बाद उद्योग मंत्रालय फिर से सुर्खियों में आ गया है। कहा जाता है कि इस मंत्रालय का पद संभालने वाले नेताओं को राजनीतिक तूफानों का सामना करना पड़ता है और कई बार उनकी कुर्सी भी जा सकती है। दरअसल, इस मान्यता को मजबूती देने वाले तीन हालिया उदाहरण हैं। सबसे पहले, बीजेपी के शाहनवाज हुसैन को 2021 में उद्योग मंत्रालय मिला। लेकिन 2022 में एनडीए से महागठबंधन लौटने पर उन्हें मंत्री पद छोड़ना पड़ा। उनका वह मशहूर वीडियो आज भी चर्चा में है जिसमें उन्होंने कहा था, “प्लेन में बैठा तो मंत्री, उतरते-उतरते भूतपूर्व हो गया।” वहीं, इसके बाद RJD नेता समीर महासेठ को 2022 में मंत्रालय मिला, लेकिन 2024 में NDA में लौटने पर उनकी भी कुर्सी चली गई। उन्होंने हालिया चुनाव में भी मधुबनी सीट गंवाई। तीसरा उदाहरण नीतीश मिश्रा का है। उन्हें 2024 में उद्योग मंत्रालय मिला और उन्होंने अच्छा काम किया, फिर भी इस बार मंत्री नहीं बन पाए। इन घटनाओं ने उद्योग मंत्रालय पर लगे ‘अपशकुन’ के मिथक को और गहरा कर दिया है और इसे राजनीतिक गलियारों में हमेशा चर्चा का विषय बना दिया है।
हालांकि, बिहार की सियासत में उद्योग मंत्रालय पर लगे ‘अपशकुन’ के मिथक को तोड़ने का जिम्मा अब नए मंत्री के कंधों पर होगा। वहीं वित्त मंत्रालय में डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी ने यह साबित कर दिया है कि सही नेतृत्व और राजनीतिक समझ से चुनौतीपूर्ण विभाग भी सुचारू रूप से चलाया जा सकता है। अब राजनीतिक गलियारों की नजरें इसी पर टिकी हैं कि नया उद्योग मंत्री किस तरह इस विभाग को संभालते हैं और क्या वे इस लंबे समय से चले आ रहे अंधविश्वास को खत्म कर पाएंगे। आने वाले हफ्तों में यही सवाल बिहार की सियासत का केंद्र बिंदु बन सकता है।
