
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए की प्रचंड जीत के बाद यह सवाल उठ रहा है कि क्या नीतीश कुमार की पार्टी जदयू को बिहार में सरकार बनाने के लिए बीजेपी को जरूरी है या नहीं। हालांकि, 2020 में भी जदयू ने सीटों में बीजेपी से कम सीटें जीती थीं, फिर भी नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया गया था। लेकिन इस बार बीजेपी ने एक विकल्प तलाशने की संभावना जताई है, खासकर नीतीश कुमार के स्वास्थ्य को लेकर चल रही अटकलों और उनके नेतृत्व पर उठते सवालों के बीच।
बिहार विधानसभा में सरकार बनाने के लिए 122 सीटों की आवश्यकता होती है। बीजेपी फिलहाल बहुमत से महज 5 सीट दूर है, जिसे वह कुछ विधायकों को तोड़कर पूरा कर सकती है। बीजेपी के पास 89 विधायक हैं, जबकि एलजेपी (आरवी) के पास 19 विधायक, हम के पास 5 विधायक, और आरएलएम के पास 4 विधायक हैं। इन सभी को मिलाकर कुल 117 सीटों का आंकड़ा बनता है। गणितीय रूप से देखा जाए तो, बीजेपी और उसके प्रमुख सहयोगियों के पास 122 का आंकड़ा पूरा करने का पर्याप्त आंकड़ा है, और अब ऐसा प्रतीत होता है कि बीजेपी को सरकार बनाने के लिए जदयू पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं होगी।
हालांकि, गणितीय रूप से, बीजेपी को नीतीश कुमार की जदयू की आवश्यकता नहीं थी। इसके बावजूद, बीजेपी और अन्य सहयोगी दलों के पास पर्याप्त संख्या थी, जिसमें स्वतंत्र और छोटे दल भी शामिल हो सकते थे। यही नहीं, चिराग पासवान की एलजेपी ने अपनी संख्या में बढ़ोतरी की है और वह उपमुख्यमंत्री पद का दावा भी पेश कर रही है।
क्यों गणित पूरी राजनीति नहीं है?
चुनाव परिणामों के बाद बीजेपी ने हालांकि एक और तस्वीर साझा की, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नीतीश कुमार का हाथ थामकर उन्हें सम्मानित किया था। यह दृश्य उस समय की याद दिलाता है जब नीतीश कुमार 2013 में बीजेपी से अलग हो गए थे और मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने पर असहमत थे। लेकिन 2017 में वह वापस एनडीए में लौट आए, और 2020 में भी जदयू और बीजेपी ने मिलकर चुनाव जीता।
नीतीश कुमार की मुख्यमंत्री के रूप में वापसी और उनके द्वारा किए गए कई कल्याणकारी योजनाओं ने उन्हें बिहार में एक स्थिर और लोकप्रिय नेता बना दिया है। उनका गुड गवर्नेंस मॉडल, जिसमें उन्होंने जातिवाद से ऊपर उठकर विकास की योजनाएं लागू कीं, उनके लिए एक मजबूत वोट बैंक बन चुका है।
वर्तमान चुनाव परिणाम यह दिखाते हैं कि नीतीश कुमार की लोकप्रियता अभी भी बरकरार है। बीजेपी भले ही सबसे बड़ी पार्टी हो, लेकिन बिहार में नीतीश कुमार की भूमिका और उनकी स्थिरता का समर्थन भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। आगामी पांच वर्षों में यह देखना होगा कि क्या बीजेपी नीतीश कुमार की मुख्यमंत्री पद की कुर्सी को लेकर कोई दबाव बनाएगी या फिर वे मिलकर सरकार बनाने की ओर आगे बढ़ेंगे।