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महागठबंधन बना ‘अखाड़ा’: बिहारशरीफ सीट पर कांग्रेस और माले में सीधी जंग, बिखराव से NDA की जीत की राह आसान!

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महागठबंधन बना 'अखाड़ा': बिहारशरीफ सीट पर कांग्रेस और माले में सीधी जंग, बिखराव से NDA की जीत की राह आसान!

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में विपक्षी दलों के गठबंधन ‘इंडिया’ (महागठबंधन) के भीतर सीट बंटवारे का विवाद अब खुलकर सामने आ गया है। नालंदा जिले की महत्वपूर्ण बिहारशरीफ विधानसभा सीट पर कांग्रेस और सीपीआई (एमएल) लिबरेशन (माले) द्वारा अपने-अपने उम्मीदवार उतारने से महागठबंधन में गंभीर दरार पड़ गई है। यह स्थिति न केवल गठबंधन की एकता पर सवाल खड़े कर रही है, बल्कि राजनीतिक जानकारों के अनुसार, विपक्षी मतों के सीधे बँटवारे से एनडीए प्रत्याशी की जीत की राह आसान हो सकती है।

त्रिकोणीय मुकाबले की ओर बिहारशरीफ की जंग
महागठबंधन में पड़ी इस गांठ ने बिहारशरीफ की चुनावी जंग को स्पष्ट रूप से त्रिकोणीय मुकाबले की ओर मोड़ दिया है। कांग्रेस ने जहाँ उमेद खान को अपना उम्मीदवार घोषित किया है, वहीं माले की ओर से शिवकुमार यादव ने ताल ठोक दी है। दोनों दलों के इस कदम से यह साफ हो गया है कि उनके लिए गठबंधन की एकजुटता से अधिक उनके व्यक्तिगत संगठन का अस्तित्व और संगठनात्मक मजबूती मायने रखती है।

राजनीतिक पंडितों का मानना है कि महागठबंधन के भीतर यह फूट एनडीए के लिए एक बड़ा अवसर है। एनडीए खेमे में पहले से ही मजबूत तैयारी मानी जा रही है, और यदि यह आंतरिक खींचतान बनी रहती है, तो विपक्षी मतों के विभाजन का सीधा लाभ एनडीए के उम्मीदवार डॉ. सुनील कुमार को मिलना तय है।

कमजोर होता कोर वोट बैंक
बिहारशरीफ विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम, यादव और दलित मतदाता अब तक महागठबंधन की पारंपरिक ताकत माने जाते रहे हैं। पिछले 2020 के चुनाव में, राजद प्रत्याशी सुनील कुमार एनडीए के डॉ. सुनील कुमार से महज 15,000 वोटों से पीछे रहे थे। इससे यह साफ था कि इस बार दोनों गठबंधनों के बीच कांटे की टक्कर होनी थी।

मगर, कांग्रेस और माले के अलग-अलग मैदान में आने से समीकरण बदल गया है, कांग्रेस अपने उम्मीदवार उमेद खान के जरिए अल्पसंख्यक मतदाताओं पर भरोसा जता रही है। हालांकि, उमेद खान गया के निवासी हैं और बिहारशरीफ की राजनीति में उनकी खास पकड़ न होने के कारण कांग्रेस को क्षति हो सकती है। माले के प्रत्याशी शिवकुमार यादव ग्रामीण इलाकों और श्रमिक/मजदूर वर्ग में गहरी पैठ रखते हैं। माले किसान और श्रमिक अधिकारों की लड़ाई को केंद्र में रखकर प्रचार कर रही है। हालांकि, बीड़ी मजदूरों की संख्या में कमी आने के कारण माले की स्थिति भी पहले जैसी मजबूत नहीं रही है। दोनों दल अब एक-दूसरे के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश में जुटे हैं, जिससे महागठबंधन के कुल वोटों में बिखराव होना निश्चित है।

एकजुटता का अभाव, विरोधियों का पलड़ा भारी
स्थानीय लोगों का मानना है कि इस बार एनडीए को कड़ी चुनौती देने के लिए महागठबंधन का एकजुट होकर लड़ना बेहद जरूरी था। लेकिन इस बिखराव के कारण विरोधियों का पलड़ा भारी होना लगभग तय है। विशेषज्ञों के अनुसार, यदि कांग्रेस और माले अपने-अपने फैसले पर अड़े रहे, तो बिहारशरीफ सीट पर महागठबंधन को बड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है।

कांग्रेस और माले की यह अंदरूनी खींचतान महागठबंधन की एकजुटता पर बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा कर रही है और चुनावी नतीजों पर इसका गहरा असर देखने को मिल सकता है।

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