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राहुल गांधी का आरक्षण का दांव कितना कारगर, कैसे बन सकती है महागठबंधन की सरकार

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बिहार चुनाव से पहले एक बार फिर से कांग्रेस नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने आरक्षण के मूदे को हवा दे दी है. उन्होंने अति पिछड़ा वर्ग यानी EBC आरक्षण को लेकर ऐसी मांग कर दी है कि ना तो BJP-JDU उसका विरोध कर पा रही और ना ही समर्थन.2015 में आरक्षण के मुद्दे पर ही BJP बिहार में हार गई थी. तब संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण की समीक्षा की बात कह दी थी.लालू यादव ने आरक्षण को ही सबसे बड़ा मुद्दा बना दिया था.

महागठबंधन ने EBC को लेकर क्या-क्या वादे किए?

24 सितंबर को पटना में INDIA ब्लॉक के नेताओं राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे, तेजस्वी यादव और मुकेश सहनी सहित लेफ्ट के नेताओं ने ‘अति पिछड़ा न्याय संकल्प’ पत्र जारी किया. इसमें 10 वादे किए गए…50% से अधिक आरक्षण देने वाले विधानसभा से पास कानून को 9वीं अनुसूची में शामिल करने के लिए केन्द्र को भेजेंगे.पंचायत-नगर निकाय आरक्षण को 20% से बढ़ाकर 30% करेंगे.प्राइवेट कॉलेज-यूनिवर्सिटी में आरक्षण लागू होगा.अति पिछड़ों के खिलाफ अत्याचार रोकने के लिए ‘अति पिछड़ा अत्याचार निवारण अधिनियम’ बनाया जाएगा.अति पिछड़ा वर्ग की सूची में सही प्रतिनिधित्व देने के लिए कमेटी बनाई जाएगी.एससी/एसटी/ओबीसी/EBC के भूमिहीनों को शहर में 3 डिसमिल और गांव में 5 डिसमिल जमीन घर बनाने के लिए दी जाएगी.प्राइवेट स्कूलों की आधी रिजर्व सीटें एससी/एसटी/ओबीसी/EBC बच्चों को दी जाएगी.25 करोड़ तक के सरकारी ठेकों में 50% आरक्षण दिया जाएगा.सरकारी नौकरी की चयन प्रक्रिया में ‘नॉट फाउंड सूटेबल’ (NFS) को खत्म कर दिया जाएगा.आरक्षण की देखरेख के लिए आरक्षण नियामक प्राधिकरण बनेगा. जातियों की आरक्षण सूची में कोई भी बदलाव केवल विधान मंडल की अनुमति से ही संभव होगा.

फिलहाल में बिहार में आरक्षण कितना लागू है?

बिहार सरकार अपनी सरकारी नौकरियों में 60% आरक्षण देती है. अनुसूचित जाति (SC) को 16%, अनुसूचित जनजाति (ST) को 1%, अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) को 18%, पिछड़ा वर्ग (BC) को 15% और आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को 10%.हालांकि, 9 नवंबर 2023 को नीतीश सरकार ने विधानसभा में कानून पास कर आरक्षण की सीमा को बढ़ाकर 75% कर दिया था. जिसे 20 जून 2024 को पटना हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया.हाईकोर्ट ने कहा था- आरक्षण संबंधी संशोधित कानून संविधान के खिलाफ हैं. कानून सम्मत नहीं हैं और इससे समानता के अधिकार का उल्लंघन होता है.पटना हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट गई. 29 जुलाई 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया. लेकिन सरकार की याचिका पर सुनवाई को मंजूरी दे दी. सुप्रीम कोर्ट में अभी केस पेंडिंग है.

आरक्षण का दायरा बढ़ाने को लेकर संवैधानिक पेच क्या है? 9वीं अनुसूची में शामिल करने के क्या मायने हैं?

संविधान में आरक्षण की सीमा तय नहीं की गई है. 1992 में इंदिरा साहनी केस में सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच ने जजमेंट दिया कि विशेष परिस्थिति को छोड़कर 50% से ज्यादा आरक्षण नहीं हो सकता.कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले के बाद से कानून बना कि 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता. इसी आदेश के आधार पर समय-समय पर राजस्थान में गुर्जर, हरियाणा में जाट, महाराष्ट्र में मराठा, गुजरात में पटेल आरक्षण का मामला कोर्ट में खारिज होता रहा है.

बिहार में राहुल गांधी EBC आरक्षण के बहाने क्या हासिल करना चाहते हैं?

बिहार में कांग्रेस की पॉलिटिक्स मुस्लिम-दलित और सवर्ण की रही है. एक तरह से देखें तो राज्य में 35 सालों से कांग्रेस पावर में नहीं रही है. हां, छोटे-छोटे कालखंड में सत्ता में जरूर रही है. राहुल गांधी बिहार में अपनी खो चुकी जमीन को EBC के सहारे हासिल करना चाहते हैं. इसके पीछे मोटे तौर पर 2 बड़ी वजह हैं :’यह तो जगजाहिर है कि नीतीश कुमार का शारीरिक और‎ मानसिक स्वास्थ्य तेजी से बिगड़ रहा है.‎ ऐसे में उनके वोट बैंक पर भाजपा सहित सभी पार्टियों की नजर है. कांग्रेस भी इसमें‎ घुसपैठ कर रही है. ‎राहुल गांधी इन समुदायों के साथ रैली और बैठक करने के लिए बिहार की 4 यात्राएं कर चुके हैं. मान्यता है कि EBC का बड़ा धड़ा नीतीश कुमार कुमार का वोट बैंक हैं.‘2025 विधानसभा चुनावों में EBC वोटों की होड़‎ सबसे ज्यादा हावी रहेगी और कुर्सी के दावेदार अपनी पूरी ताकत नीतीश के मुख्य वोट बैंक में सेंध लगाने में लगाएंगे.’

महागठबंधन को सत्ता में आने के लिए कितना वोट चाहिए?

महागठबंधन को बिहार की सत्ता में आने के लिए 5 से 7% और वोट की जरूरत है. तेजस्वी यादव का आधार वोट यादव और मुस्लिम इंटेक्ट हैं. कांग्रेस के पास पुराने कांग्रेसी परिवार को छोड़कर कोई वोट बैंक नहीं है. नीतीश कुमार कमजोर हो रहे हैं तो राहुल-तेजस्वी को लगता है कि EBC में कुछ सेंधमारी की जा सकती है.2020 में तेजस्वी बेरोजगारी और बदहाली के नाम पर EBC के छोटे समूह का वोट पाने में कामयाब रहे थे, तब ही विधानसभा चुनाव में थोड़े से फासले से सरकार बनाने से रह गए थे.इस बार महागठबंधन ने EBC समाज से आने वाले मुकेश सहनी को अपने साथ जोड़ा है. सहनी के समाज मल्लाह की आबादी EBC में सबसे अधिक 2.6% है.

5 से 7% और वोट से महागठबंधन की सरकार बन जायेगी?

बीते 20 साल से बिहार में दो गठबंधनों के बीच सीधा मुकाबला होता रहा है. आंकड़ों को देखें तो जिस भी गठबंधन के पास 40% के आसपास वोट मिला है, सत्ता उसे मिली है. 2020 में महागठबंधन और NDA में सबसे कड़ी टक्कर हुई. महागठबंधन को पहली बार 37.9% वोट मिला. NDA से सिर्फ 11,150 वोट कम. यही कारण है कि NDA 125 और महागठबंधन 110 सीट जीता.CSDS-लोकनीति के पोस्ट पोल सर्वे के मुताबिक, EBC समाज के 58 फीसदी लोगों ने NDA को वोट किया. 18 फीसदी लोगों ने RJD लीड महागठबंधन को वोट किया.

2015 में नीतीश महागठबंधन में आए तो BJP बुरी तरह हारीः

2015 विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार भाजपा का साथ छोड़ लालू यादव के साथ मिल गए थे. तब महागठबंधन में लालू, नीतीश और कांग्रेस थी. चुनाव का रिजल्ट आया तो नीतीश लीड महागठबंधन को 42.9% वोट शेयर के साथ 178 सीटें मिली.जबकि, BJP लीड NDA को 34.9% वोट शेयर के साथ 243 में से सिर्फ 58 सीटें मिलीं.2010 में बुरी तरह हारे लालू यादवः 2010 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने लालू यादव से गठबंधन तोड़ लिया था. कांग्रेस सभी सीटों पर चुनाव लड़ी. 8.4% वोट शेयर के साथ उसे सिर्फ 4 सीटों पर जीत मिली.लालू यादव और रामविलास पासवान ने गठबंधन में चुनाव लड़ा. उस गठबंधन को 25.6% वोट शेयर के साथ 25 सीटों पर जीत मिली.जबकि, नीतीश लीड NDA को 39.1% वोट शेयर के साथ 206 सीटों पर जीत मिली. CSDS के सर्वे के मुताबिक, 2010 में 63 फीसदी EBC वोटरों ने NDA को वोट दिया था.

बिहार जातीय गणना-2023 के‎ मुताबिक, राज्य की 13 करोड़ आबादी में से 4.70 करोड़ मतलब 36% EBC हैं. इसमें 112 जातियां हैं, जिसमें से करीब 100 जातियों की संख्या 1 फीसदी से कम है.मिथिलांचल, कोसी, तिरहुत और मगध में इनका प्रभाव अधिक है. विधानसभा की 243 में से करीब 120 सीटों पर EBC की संख्या 20 से 40 फीसदी है. यह जीत-हार के लिए निर्णायक हैं. EBC की ताकत को सबसे पहले लालू यादव ने पहचाना था. उस वक्त (1990-2005 तक) EBC में 94 जातियां थी. तब इस तबके का बड़ा हिस्सा लालू यादव को वोट करता था. 1995, 2000 की चुनावी रैलियों में लालू यादव कहते थे- ‘देखिएगा, बक्सा से जिन्न निकलेगा’ और हम जीत जाएंगे.

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