
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियों को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पटना में एक महत्वपूर्ण बैठक बुलाई है। इस बैठक में पार्टी के शीर्ष नेता शामिल होंगे और आगामी चुनावों के लिए चुनावी रणनीति, सीट बंटवारे के फार्मूले और बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों पर विस्तार से चर्चा की जाएगी।
बिहार में चुनावी गहमागहमी तेज हो चुकी है, भले ही चुनाव आयोग ने अभी तारीखों का ऐलान न किया हो। सभी राजनीतिक दल अपनी तैयारियों में जुट गए हैं। इसी कड़ी में, सत्ताधारी दल भाजपा की यह बैठक बेहद अहम मानी जा रही है। माना जा रहा है कि इस बैठक में आगामी चुनाव की दिशा और दशा तय की जाएगी।
बैठक का एजेंडा और प्रमुख चेहरे
यह बैठक भाजपा कोर कमेटी की बड़ी बैठक से पहले बुलाई गई है। इसमें पार्टी के राष्ट्रीय संगठन मंत्री बीएल संतोष और वरिष्ठ नेता राममाधव जैसे केंद्रीय नेतृत्व के बड़े चेहरे मौजूद रहेंगे। इनके अलावा, बिहार भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल, मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी, उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा और अन्य वरिष्ठ नेता भी बैठक में शामिल होंगे।
पार्टी सूत्रों के अनुसार, बैठक का मुख्य एजेंडा बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियों की समीक्षा, कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों का बंटवारा और सबसे महत्वपूर्ण, सीट बंटवारे के फार्मूले पर चर्चा करना है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार सीट बंटवारे को लेकर एनडीए और महागठबंधन दोनों में ही खींचतान बढ़ सकती है, क्योंकि सभी दल अपनी हिस्सेदारी बढ़ाना चाहेंगे।
बूथ स्तर पर मजबूती और चुनावी रणनीति
भाजपा का ध्यान सिर्फ पटना में होने वाली इस बैठक तक ही सीमित नहीं है। पार्टी ने जमीनी स्तर पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए पूरे राज्य में विधानसभा स्तरीय कार्यकर्ता सम्मेलन आयोजित करना शुरू कर दिया है। बांका जिले के धोरैया में हाल ही में ऐसा ही एक सम्मेलन आयोजित किया गया था। आने वाले दिनों में सासाराम, हथुआ, अस्थावां, सिमरी बख्तियारपुर, नवादा और मुजफ्फरपुर सहित कई अन्य विधानसभा क्षेत्रों में भी ऐसे कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
भाजपा का मानना है कि इन सम्मेलनों से न सिर्फ कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ेगा, बल्कि यह मतदाताओं से सीधा जुड़ने और एनडीए सरकार की उपलब्धियों को जनता तक पहुंचाने का भी एक प्रभावी तरीका है। पार्टी का लक्ष्य बूथ स्तर तक अपनी पैठ मजबूत करना है, जिसे चुनावी सफलता की कुंजी माना जाता है।
वहीं, दूसरी ओर, महागठबंधन भी पीछे नहीं है। राजद, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल लगातार बैठकें कर रहे हैं और भाजपा की कमजोरियों को मुद्दा बनाने की रणनीति बना रहे हैं। बेरोजगारी, महंगाई और शिक्षा जैसे मुद्दे विपक्ष के प्रमुख हथियार हैं।
इस बार का चुनाव बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ ला सकता है। यदि एनडीए दोबारा सत्ता में आती है, तो उनकी राजनीतिक पकड़ और मजबूत होगी। वहीं, अगर महागठबंधन को जीत मिलती है, तो बिहार की सत्ता के समीकरण पूरी तरह से बदल जाएंगे

