
तेज प्रताप यादव विधानसभा चुनाव में तेजप्रताप यादव तेजस्वी यादव आमने-समाने होंगे.उन्होंने अपनी नई पार्टी जनशक्ति जनता दल बना ली है. अब मुकाबला RJD बनाम जनशक्ति जनता दल होगा. सबके जेहन में ये सवाल है – तेज प्रताप अगर मैदान में बने रहते हैं तो अपने भाई तेजस्वी को कितना नुकसान पहुचाएंगे? किन किन सीट पर उनका फोकस रहेगा? लालू परिवार में दरार का सियासत में क्या नफा–नुकसान होगा?
लालू के दोनों बेटों के बीच की ये तकरार 2025 के चुनाव में बिहार की सियासत को 2 तरह से प्रभावित कर सकती है.तेज प्रताप के पास भले अपना तेजस्वी की तरह कोई मजबूत जनाधार नहीं है. और ना ही उनके पास अपना कोई राज्य व्यापी संगठन है. लेकिन जिस तरह वह अपनी छवि लालू की तरह गढ़ने का प्रयास कर रहे हैं, इससे RJD के कोर वोट बैंक में कुछ सेंधमारी जरूर कर सकते हैं. इसका सीधा नुकसान तेजस्वी को होगा. 2020 विधानसभा चुनाव के करीबी नतीजों (NDA से सिर्फ 0.23% वोट शेयर कम) को देखते हुए निर्णायक हो सकता है.
2019 लोकसभा चुनाव के दौरान तेज प्रताप जहानाबाद और शिवहर सीट से अपने करीबियों को मैदान में उतारना चाहते थे. टिकट को लेकर खूब जोर-अजमाइश की, लेकिन नहीं मिला. इसके बाद उन्होंने दोनों जगहों से निर्दलीय अपना प्रत्याशी उतार दिया.हालांकि, शिवहर के प्रत्याशी का नामांकन रद्द हो गया. सिर्फ जहानाबाद से तेज के करीबी चंद्र प्रकाश ही चुनाव लड़े. इसका जोर-शोर से प्रचार लालू के बड़े बेटे ने किया.तब तेज प्रताप ने लोगों से कहा था, ‘आप यह जान लीजिए यहां से चंद्र प्रकाश नहीं, लालू के बड़े बेटे लड़ रहे हैं. उसको जिता दीजिए. इसके बदौलत चंद्र प्रकाश को चुनाव में 7,755 वोट मिले और JDU के चन्देश्वर प्रसाद चन्द्रवंशी RJD के सुरेंद्र प्रसाद यादव से 1,751 वोटों से चुनाव जीत गए. चुनाव बाद कहा गया कि अगर तेज प्रताप ने वहां अपना प्रत्याशी नहीं दिया होता तो RJD चुनाव जीत जाती.
पारिवारिक टकराव से तेजस्वी की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठेंगे, जिसे NDA भुनाएगा. डिप्टी सीएम विजय सिन्हा तंज भी कसते नजर आते हैं.’जो भाई को नहीं संभाल सका, वह बिहार को क्या संभालेगा?’ ‘तेज प्रताप को RJD और परिवार से बाहर निकालना. उनके द्वारा मीसा भारती, राज लक्ष्मी, और हेमा यादव जैसे परिवार के सदस्यों को सोशल मीडिया पर अनफॉलो करना, परिवार में टूट को सार्वजनिक करता है. यह तेजस्वी की एकजुट नेतृत्व की छवि को कमजोर करेगा. विरोधी उनके व्यवहार को भुनाने का प्रयास करेंगे.’
लालू प्रसाद यादव ने बिहार की सियासत को अपने करिश्माई नेतृत्व और मुस्लिम-यादव समीकरण से 15 साल राज किया. पत्नी राबड़ी देवी को CM और बेटे को डिप्टी सीएम बनाया.अपने MY समीकरण के बदौलत आज भी वह बिहार की सियासत के धुरी बने हुए हैं, लेकिन अब चुनाव के ठीक मुहाने पर लालू उम्र के ढलान पर हैं तो उनके दोनों बेटों तेज प्रताप और तेजस्वी के बीच दबे पांव सत्ता की जंग छिड़ चुकी है.तेजस्वी RJD के भविष्य हैं, जिन्हें लालू ने अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है. वहीं, तेज प्रताप अपनी अलग पहचान बनाने को बेताब हैं, लेकिन उनके विवादास्पद बयान उन्हें बार-बार मुश्किल में डाल रहे हैं.
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की परिवर्तन रैली में हजारों कार्यकर्ताओं और समर्थकों के बीच लालू यादव दोनों बेटों तेजप्रताप यादव और तेजस्वी यादव का हाथ पकड़कर मंच से उनके राजनीति में आने का ऐलान किया था. लालू ने कहा, ‘लालू का बेटा लालटेन नहीं पकड़ेगा तो क्या कमल और तीर पकड़ेगा.’ संदेश साफ था कमान अब बेटों के हाथ में रहेगी.हालांकि, तब लालू ने दोनों बेटों को बराबर हैसियत दी. ना किसी को आगे किया और ना पीछे. शायद वह थोड़ा वक्त और जांचना-परखना चाहते थे कि तेज-तेजस्वी में से किस पर भरोसा किया जा सकता. चूंकि दोनों भाइयों की उम्र में सिर्फ एक साल का अंतर था.
सत्ता से बेदखल होने के 10 साल बाद लालू अपने धुर राजनीतिक विरोधी नीतीश कुमार से मिले और विधानसभा का चुनाव साथ लड़े. इसी चुनाव से उनके दोनों बेटों का चुनावी डेव्यू शुरू हुआ.छोटे बेटे तेजस्वी यादव मां की पारंपरिक सीट राघोपुर से लड़े और बड़े बेटे तेज प्रताप एक नई यादव बहुल सीट महुआ से मैदान में उतरे. दोनों जीते. नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार बनी तब यह यादव परिवार में पहला सियासी टर्न आया.छोटे बेटे को डिप्टी CM की हैसियत और बड़े बेटे को मंत्री का पद मिला.लालू यादव ने पार्टी की कमान धीरे-धीरे तेजस्वी यादव के हाथों में सौंप दी. सारे बड़े फैसले तेजस्वी यादव ही लेते हैं.
2017 में लालू यादव चारा घोटाले में जेल चले गए. 18 महीने तक सत्ता का सूख भोगने के बाद जुलाई 2017 में नीतीश कुमार ने RJD को सत्ता से बेदखल कर दिया.तब लालू ने एक बार फिर बड़े बेटे से ज्यादा छोटे बेटे तेजस्वी को तरजीह दी और विधानसभा में विपक्ष का नेता बना दिया.पिता के जेल जाते ही तेजस्वी ने पार्टी और संगठन पर धीरे-धीरे अपनी पकड़ बनानी शुरू कर दी. पार्टी के सीनियर नेता भी लालू के बाद तेजस्वी को ही नेता मानने लगे.साल 2019 में पहली बार लालू यादव के बिना RJD चुनाव मैदान में थी. सीट से लेकर कैंडिडेट तक, सबके सिलेक्शन की जिम्मेदारी तेजस्वी ने अपने हाथ में ले लिया. चुनाव से पहले तेज प्रताप ने अपने पसंद के लोगों को टिकट देने का वादा कर लिया था. लेकिन जब टिकट बंटा तो लिस्ट में उनका एक भी समर्थक नहीं था. तब उन्हें RJD में अपनी हैसियत का अहसास हुआ. और नाराज होकर छात्र राजद के संरक्षक पद से इस्तीफा दे दिया.
सवाल- लेकिन 2020 का विधानसभा चुनाव में जब लालू जेल में थे , तेजस्वी पावर में. परिवार एकजुट दिखी , लेकिन चुनावी पोस्टर से लालू गायब हो गये.पार्टी के नए पोस्टर बॉय तेजस्वी यादव बन गये.RJD 80 सीटों पर जीतकर बिहार की सबसे बड़ी पार्टी बन गी लेकिन सत्ता से दूर रही.जेल से बाहर आने के बाद लालू यादव ने कहा- ‘तेजस्वी यादव हमसे भी बहुत आगे निकल चुके हैं, किसी के बनाने से कोई नहीं बनता है, खुद बन जाता है. 11 अक्टूबर 2022 को राजद का दो दिवसीय सम्मेलन दिल्ली में हुआ.इसमें दो अहम प्रस्ताव पास हुए.पहला- RJD के नीतिगत और महत्वपूर्ण मामलों में सिर्फ तेजस्वी यादव ही बोलेंगे.दूसरा- भविष्य में पार्टी के नाम, चुनाव चिह्न और टिकट बंटवारे पर अहम फैसले सिर्फ लालू यादव और तेजस्वी ही लेंगे.
तेजप्रताप को संगठन में कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं मिली.लेकिन तेज प्रताप खुद को तेजस्वी का सारथी बताते रहे. मई 2025 में तेज प्रताप अपनी एक गलती से पार्टी-परिवार से बेदखल हो गये. उन्हें ये सजा तब दी गई जब उन्होंने सामने विधानसभा का चुनाव है. संदेश साथ था- RJD मतलब तेजस्वी.बेदखली के 35 दिन बाद तेज प्रताप RJD से बगावत कर दिया.महुआ सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया. 5 छोटे दलों भोजपुरिया जन मोर्चा, विकास वंचित इंसान पार्टी, संयुक्त किसान विकास पार्टी, प्रगतिशील जनता पार्टी, और वाजिब अधिकार पार्टी के साथ ‘जन शक्ति मोर्चा’ बनाया.अब वो अपनी पार्टी भी बना चुके हैं और अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान भी लगातार कर रहे हैं.