
बिहार की सियासत में जाति का समीकरण हमेशा से अहम् भूमिका निभाता रहा है. भूमिहार समुदाय, जो राज्य की आबादी का लगभग 3-4% है, अपनी राजनीतिक ताकत के लिए जाना जाता है. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में विभिन्न पार्टियों ने भूमिहार उम्मीदवारों को टिकट देकर इस समुदाय को साधने की कोशिश की. लेकिन देखा गया कि भूमिहार बहुल कई सीटों पर राजपूत उम्मीदवार जीत गए और भूमिहार उम्मीदवार हार गए.
बिहार के आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए खासकर एनडीए के भूमिहार नेताओं की बैठकों और उनकी रणनीति का दौर शुरू हो गया है. मुजफ्फरपुर से आई एक तस्वीर ने राज्य के सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है, जिसमें जिले के तीन भूमिहार नेता सुरेश शर्मा, अजीत कुमार और रंजन कुमार गुप्त बैठक कर रहे हैं. बिहार चुनाव 2025 को लेकर इन बैठकों के कई मायने तलाशे जा रहे हैं. खासकर बिहार की भूमिहार बहुल सीटों पर उनके दावे की पड़ताल भी शुरू हो गई है.
चुनाव से पहले भूमिहार एकजुट हो रहे हैं. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में 243 सीटों के लिए विभिन्न पार्टियों ने सामाजिक समीकरणों को साधते हुए टिकट वितरण किया. भारतीय जनता पार्टी ने 110 सीटों पर चुनाव लड़ा और सामाजिक समीकरण को ध्यान में रखते हुए 15 भूमिहार उम्मीदवारों को टिकट दिया. बीजेपी ने (21) और यादव (11) उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी. बीजेपी ने 2020 के चुनाव में 27 सीटों की पहली चरण की सूची में कुल 6 भूमिहार उम्मीदवारों को टिकट दिया था. कांग्रेस ने उसी सूची में 6 भूमिहार प्रत्याशियों को टिकट दिया. आरजेडी ने केवल एक भूमिहार अनंत सिंह की पत्नी को मोकामा से टिकट दिया. जेडीयू के पास 2020 के विधानसभा चुनाव में 5 भूमिहार विधायक थे. वहीं, हम ने टिकारी से भूमिहार नेता अनिल कुमार को टिकट दिया.
राजनीतिक जानकारों की मानें तो भूमिहार अब एनडीए में निर्णायक भूमिका में हैं. 2023 की जनगणना की चर्चा और जातीय समीकरणों की बदलती तस्वीर से यह स्पष्ट है कि सभी पार्टियां उन्हें साधने में लगी हैं. यही कारण है कि भूमिहार नेतृत्व अब मिलकर आने वाली रणनीति तय करना चाहता है. ऐसे में आगामी चुनाव में भूमिहार नेता अब सामूहिक रूप से टिकट मांगने, क्षेत्रीय समझौतों और उम्मीदवार चयन पर असर डालने हेतु भूमिहार नेताओं की बैठकों की शुरुआत हुई है.
