
2019 के बाद जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुआ चरमपंथी हमला हुआ सबसे घातक हमला है.इस हमले में 28 लोग मारे गये हैं.मारे जाने वाले लोगों में सैनिक या अधिकारी नहीं थे, बल्कि भारत की सबसे ख़ूबसूरत घाटी में घूमने आए पर्यटक थे. इसीलिए यह हमला क्रूर और प्रतीकात्मक दोनों है- यह सिर्फ़ लोगों की जान लेने की सोची-समझी कार्रवाई ही नहीं है, बल्कि यह हालात के सामान्य होने पर भी हमला है. वो ‘सामान्य हालात’ जिसका संदेश देने के लिए भारत सरकार ने कड़ी मेहनत की है.
पूरे कश्मीर पर भारत और पाकिस्तान दोनों दावा करते हैं, हालांकि इसके अलग-अलग हिस्से पर दोनों का शासन है.हमले के बाद भारत ने कई जवाबी क़दम उठाए हैं, जिनमें मुख्य बॉर्डर क्रासिंग अटारी को बंद करना, पाकिस्तान के साथ महत्वपूर्ण सिंधु जल संधि को निलंबित करना और कुछ राजनयिकों को निकालना शामिल है.इसके अलावा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ‘कड़ी कार्रवाई’ करने की बात कही है और वादा किया है कि सिर्फ़ हमलावरों पर ही नहीं, बल्कि भारतीय धरती पर इस ‘नापाक हरकत’ के पीछे के मास्टरमाइंड पर भी कार्रवाई होगी.
साल 2016 से ही ख़ास तौर पर 2019 के बाद, जवाबी कार्रवाई के रूप में सीमा पार सैन्य अभियान या हवाई हमले का तरीक़ा अपनाया गया.अब सरकार के लिए उससे कम कार्रवाई करना मुश्किल होगा. और पाकिस्तान इसका जवाब देगा, जैसा उसने पहले भी किया है. दोनों तरफ़ से ग़लत अनुमान का ख़तरा बना रहेगा जैसा हमेशा होता है.इससे पहले सितंबर 2016 में जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर में नियंत्रण रेखा के पास हुए घातक हमले में 19 भारतीय सैनिकों की मौत हो गई थी.इसके बाद भारत ने नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पार कथित ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की थी और दावा किया था कि पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में मौजूद चरमपंथियों के ठिकाने को निशाना बनाया गया.
साल 2019 में पुलवामा में हमला हुआ, जिसमें अर्द्धसैनिक बलों के 40 जवानों की मौत हो गई थी. इसके बाद भारत ने बालाकोट में कथित चरमपंथी कैंपों पर हवाई हमले किए थे.1971 के बाद यह पहली बार था जब भारत ने पाकिस्तान के अंदर हमला किया था.पाकिस्तान ने भी जंगी विमानों से इसका जवाब दिया और लड़ाकू विमानों के बीच संघर्ष में एक भारतीय पायलट को बंदी बना लिया था.इसमें दोनों तरफ़ से शक्ति प्रदर्शन किया गया, लेकिन पूर्ण युद्ध को टाल दिया गया.दो साल बाद 2021 में दोनों ही देशों के बीच एलओसी सीज़फ़ायर पर सहमति बनी, लेकिन जम्मू-कश्मीर में बार-बार चरमपंथी हमलों के बावजूद यह समझौता बरक़रार रहा

हमले में बड़ी संख्या में हुई मौतों और भारतीय नागरिकों को निशाना बनाए जाने से इस बात का अंदेशा बढ़ गया है कि भारत अगर हमले में पाकिस्तान का हाथ होने के सबूत हासिल कर लेता है या केवल ऐसा मान भी लेता है तो उसके (पाकिस्तान के) ख़िलाफ़ भारतीय सेना की कड़ी कार्रवाई हो सकती है.भारत के लिए इस तरह की किसी प्रतिक्रिया का मुख्य लाभ राजनीतिक होगा क्योंकि उस पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई करने का दबाव होगा.एक दूसरा लाभ है कि अगर जवाबी कार्रवाई में चरमपंथी ठिकानों को सफलतापूर्वक निशाना बनाया जाता है तो इससे उसकी डिटरेंस क्षमता बढ़ेगी और भारत विरोधी ख़तरा कम होगा. इसका एक नुकसान है कि जवाबी कार्रवाई से संकट गंभीर हो सकता है और यहां तक कि संघर्ष छिड़ने का भी ख़तरा है.
“भारत के पास दो रास्ते बचते हैं.पहला, 2021 का एलओसी सीज़फ़ायर कमज़ोर पड़ रहा है लिहाजा भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्रॉस बॉर्डर फ़ायरिंग को हरी झंडी दे सकते हैं.दूसरा, साल 2019 की तरह ही हवाई हमले या पारंपरिक क्रूज़ मिसाइल हमले का विकल्प भी मौजूद है, इसमें जवाबी कार्रवाई का ख़तरा है, जैसा 2019 के दौरान देखने को मिला था. कोई भी रास्ता बिना जोख़िम वाला नहीं है. इस समय अमेरिका भी दूसरे मामलों में उलझा है और हो सकता है कि संकट के समाधान में इस बार मदद न कर पाए.भारत पाकिस्तान संकट में सबसे बड़ा ख़तरा ये है कि दोनों पड़ोसी देशों के पास परमाणु हथियार हैं.
हर फ़ैसले पर इसका असर होता है, चाहे सैन्य रणनीति को आकार देना हो या राजनीतिक समीकरण का मामला हो.परमाणु हथियार ख़तरा भी हैं और प्रतिरोध का काम भी करते हैं. यह दोनों पक्षों को कार्रवाई करने का फ़ैसला लेने में संयम बरतने को मजबूर करते हैं. किसी भी कार्रवाई को सटीक और टार्गेटेड के रूप में दिखाने की संभावना है. पाकिस्तान भी उसी तरह की जवाबी कार्रवाई कर सकता है और फिर कोई दूसरा रास्ता अख़्तियार कर सकता है
